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कविताएँ: दिसम्बर 2021
आपत्तियाँ
ट्रेन के जनरल डिब्बे में चार के लिए तय जगह पर
छह बैठ जाते थे
तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती थी
स्लीपर में रात के समय...
भीड़
भीड़ विमर्शो के बीच फँसी सच की तलाश में है
तलाशना कुआँ खोदना-सा हो गया है
घृणा-द्वेष के साँप-बिच्छू बिलबिलाते हुए हाथ लगते हैं
मारो-काटो की फुसफुसाहट...