Tag: Mukul Amlas
अपर्याप्त
क्रोध का हलाहल इतना व्याप्त था कि
उसका सम्पूर्ण अस्तित्व हो गया था विषमय
मेरे पास थी सिर्फ़ एक बूँद मिठास
चाहा था उसे सागर में घोलना
उसे मीठा करना
पर...
कविताएँ: अक्टूबर 2020
सार्वजनिक मकान
बेतरतीब घर को सहेजने-सँवारने में
स्त्री लगाती रोज़ अपना बेशक़ीमती वक़्त
सजा-सँवरा घर कितना निखर आता
वर्षा के बाद खुले आसमान की तरह
मिलता सुकून उसे अपना कहने...