Tag: My Experiments with Truth
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा – दुःखद प्रसंग – 1
"पत्नी की चेतावनी को तो मैं अभिमानी पति क्यों मानने लगा? माता की आज्ञा का उल्लंघन मैं करता ही न था। बड़े भाई की बात मैं हमेशा सुनता था।"
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा – हाईस्कूल में
"अपने आचरण के विषय में मैं बहुत सजग था। आचरण में दोष आने पर मुझे रुलाई आ ही जाती थी। मेरे हाथों कोई भी ऐसा काम बने, जिससे शिक्षक को मुझे डाँटना पड़े अथवा शिक्षकों का वैसा खयाल बने तो वह मेरे लिए असह्य हो जाता था।"
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा – ‘पतित्व’
"कस्तूरबाई ऐसी कैद सहन करनेवाली थी ही नहीं। जहाँ इच्छा होती वहाँ मुझसे बिना पूछे ज़रूर जाती। मैं ज्यों-ज्यों दबाव डालता, त्यों-त्यों वह अधिक स्वतंत्रता से काम लेती, और मैं अधिक चिढ़ता।"
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा – बाल-विवाह
"वह पहली रात! दो निर्दोष बालक अनजाने संसार-सागर में कूद पड़े। भाभी ने सिखलाया कि मुझे पहली रात में कैसा बरताव करना चाहिए। धर्मपत्नी को किसने सिखलाया, सो पूछने की बात मुझे याद नहीं।"
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा – बचपन
"मैं बहुत ही शरमीला लड़का था। घंटी बजने के समय पहुँचता और पाठशाला के बंद होते ही घर भागता। 'भागना' शब्द मैं जान-बूझकर लिख रहा हूँ, क्योंकि बातें करना मुझे अच्छा न लगता था। साथ ही यह डर भी रहता था कि कोई मेरा मजाक उड़ाएगा तो?"
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा – जन्म
"मुझे सिर्फ इतना याद है कि मैं उस समय दूसरे लड़कों के साथ अपने शिक्षकों को गाली देना सीखा था। और कुछ याद नहीं पड़ता। इससे मैं अंदाज लगाता हूँ कि मेरी स्मरण शक्ति उन पंक्तियों के कच्चे पापड़-जैसी होगी, जिन्हें हम बालक गाया करते थे। वे पंक्तियाँ मुझे यहाँ देनी ही चाहिए :
एकडे एक, पापड़ शेक;
पापड़ कच्चो, ___ मारो ___
पहली खाली जगह में मास्टर का नाम होता था। उसे मैं अमर नहीं करना चाहता। दूसरी खाली जगह में छोड़ी हुई गाली रहती थी, जिसे भरने की आवश्यकता नहीं।"
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा – प्रस्तावना
चार या पाँच वर्ष पहले निकट के साथियों के आग्रह से मैंने आत्मकथा लिखना स्वीकार किया और उसे आरंभ भी कर दिया था। किंतु फुल-स्केप...
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा
प्रस्तावना
पहला भाग:
जन्म
बचपन
बाल-विवाह
पतित्व
हाईस्कूल में
दुःखद प्रसंग - 1