Tag: Nagarjuna

Baba Nagarjuna

सिंदूर तिलकित भाल

घोर निर्जन में परिस्थिति ने दिया है डाल! याद आता है तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल! कौन है वह व्यक्ति जिसको चाहिए न समाज? कौन है वह एक...
Baba Nagarjuna

पछाड़ दिया मेरे आस्तिक ने

शुरू-शुरू कातिक में निशा शेष ओस की बूँदियों से लदी है अगहनी धान की दुद्धी मंजरियाँ पाकर परस प्रभाती किरणों का मुखर हो उठेगा इनका अभिराम रूप... टहलने निकला...
Baba Nagarjuna

चंदू, मैंने सपना देखा

चंदू, मैंने सपना देखा, उछल रहे तुम ज्यों हिरनौटा चंदू, मैंने सपना देखा, अमुआ से हूँ पटना लौटा चंदू, मैंने सपना देखा, तुम्हें खोजते बद्री बाबू चंदू,...
Baba Nagarjuna

शासन की बंदूक

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक जिसमें कानी हो गई शासन...
Baba Nagarjuna

अकाल और उसके बाद

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों...
Baba Nagarjuna

खुरदरे पैर

खुब गए दूधिया निगाहों में फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर धँस गए कुसुम-कोमल मन में गुट्ठल घट्ठोंवाले कुलिश-कठोर पैर दे रहे थे गति रबड़-विहीन ठूँठ पैडलों को चला रहे थे एक नहीं, दो नहीं,...
Baba Nagarjuna

बादल को घिरते देखा है

अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है। छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को, मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है, बादल को...
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कालिदास

कालिदास, सच-सच बतलाना! इन्दुमती के मृत्युशोक से अज रोया या तुम रोये थे? कालिदास, सच-सच बतलाना! शिवजी की तीसरी आँख से निकली हुई महाज्वाला में घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम कामदेव जब भस्म...
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गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है! सामने गियर से उपर हुक से लटका रक्खी हैं काँच की चार...
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ईनाम

"सारस का गला लम्बा था, चोंच नुकीली और तेज थी। भेड़िये की वैसी हालत देखकर उसके दिल को बड़ी चोट लगी। भेड़िये के मुँह में अपना लम्बा गला डालकर सारस ने चट् से काँटा निकाल लिया और बोला- 'भाई साहब, अब आप मुझे ईनाम दीजिए!'..." इस कहानी को अगर बच्चों को सुनाया जाए और इस स्थान पर पॉज करके पूछा जाए कि भेड़िये ने सारस को क्या ईनाम दिया होगा.. तो उनके जवाब आपको विवश कर देंगे कि आप इस कहानी का अंत उन्हें न बताएँ! लेकिन कहानियाँ होती ही हैं 'स्वाभाविक' और 'व्यवहारिक' की समझ देने के लिए! :)
Baba Nagarjuna

आओ रानी

"आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की यही हुई है राय जवाहरलाल की.." यह कविता नागार्जुन ने तब लिखी थी, जब भारत की आज़ादी के बाद ब्रिटेन की महारानी भारत आयी थीं.. तत्कालीक सरकार पर अविश्वास और जिनकी गुलामी भारत विभाजन में परिणत हुई, उन्हीं के स्वागत पर व्यंग्य इस कविता में साफ झलकता है!
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