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भाषा
पृथ्वी के अन्दर के सार में से
फूटकर निकलती हुई
एक भाषा है बीज के अँकुराने की।
तिनके बटोर-बटोरकर
टहनियों के बीच
घोंसला बुने जाने की भी एक भाषा है।
तुम्हारे...
स्वप्न के घोंसले
स्वप्न में पिता घोंसले के बाहर खड़े हैं
मैं उड़ नहीं सकती
माँ उड़ चुकी है
कहाँ
कुछ पता नहीं
मेरे आगे किताब-क़लम रख गया है कोई
और कह गया...
घोंसला, भाषा
घोंसला
मुझे नहीं पता
मेरे पास कितना वक़्त शेष है
उम्र का कितना हिस्सा जी चुका
कितना रह गया है बाक़ी
मैं नहीं जानता
आजकल बहुत कम सोता हूँ
बहुत कुछ...
हम अपने घोंसलों में चाँद रखते हैं
'Hum Apne Ghonslon Mein Chand Rakhte Hain', a poem by Deepak Jaiswal
चाँद हर बार सफ़ेद नहीं दिखता
उनींदी आँखों से बहुत बार वह लाल दिखता...