Tag: Nida Fazli

Nida Fazli

आदमी की तलाश

अभी मरा नहीं, ज़िन्दा है आदमी शायद यहीं कहीं उसे ढूँढो, यहीं कहीं होगा बदन की अंधी गुफा में छुपा हुआ होगा बढ़ा के हाथ हर इक रौशनी...
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फ़क़त चन्द लम्हे

बहुत देर है बस के आने में आओ कहीं पास की लॉन पर बैठ जाएँ चटखता है मेरी भी रग-रग में सूरज बहुत देर से तुम भी चुप-चुप खड़ी...
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‘शहर में गाँव’ से नज़्में

यहाँ प्रस्तुत सभी नज़्में निदा फ़ाज़ली के सम्पूर्ण काव्य-संकलन 'शहर में गाँव' से ली गई हैं। यह संकलन मध्य-प्रदेश उर्दू अकादमी, भोपाल के योगदान...
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एक लड़की

काव्य-संकलन: 'शहर से गाँव' लिप्यंतरण: आमिर विद्यार्थी वह फूल-फूल बदन साँवली-सी एक लड़की जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है सुना है वह किसी लड़के से प्यार करती है बहार...
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीन, कहीं आसमाँ नहीं मिलता तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उमीद हो इसकी, वहाँ नहीं...
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बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ

'Besan Ki Saundhi Roti', poetry by Nida Fazli बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ याद आती है चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ बाँस...
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ख़ुदा का घर नहीं कोई

'Khuda Ka Ghar Nahi Koi', a nazm by Nida Fazli ख़ुदा का घर नहीं कोई बहुत पहले हमारे गाँव के अक्सर बुज़ुर्गों ने उसे देखा था पूजा था यहीं...
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छोटी-सी शॉपिंग

गोटे वाली लाल ओढ़नी उस पर चोली-घागरा उसी से मैचिंग करने वाला छोटा सा इक नागरा छोटी सी! ये शॉपिंग थी या! कोई जादू-टोना लम्बा चौड़ा शहर अचानक बनकर एक खिलौना इतिहासों का जाल तोड़ के दाढ़ी पगड़ी ऊँट छोड़...

आख़री सच

वही है ज़िन्दा गरजते बादल सुलगते सूरज छलकती नदियों के साथ है जो ख़ुद अपने पैरों की धूप है जो ख़ुद अपनी पलकों की रात है जो बुज़ुर्ग सच्चाइयों की...
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