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यंग शन शुन की कविताएँ
यंग शन शुन इक्कीस साल की हैं, पर उनकी कविताएँ उनकी उम्र से कहीं अधिक गूढ़ हैं। यहाँ तत्सम शब्दों से चौंका देना मात्र...
ओ निशा!
ओ निशा!
अब तो तमस् को पात्र में भरकर उड़ेलो
और जो तारा-गणों की मालिका सजती तुम्हारे कण्ठ पर, उसको उतारो
मालिका से ना रहे अब मोह...
सफ़ेद रात
पुराने शहर की इस छत पर
पूरे चाँद की रात
याद आ रही है वर्षों पहले की
जंगल की एक रात
जब चाँद के नीचे
जंगल पुकार रहे थे...
बारिश की रात
आरा शहर। भादों का महीना। कृष्ण पक्ष की अँधेरी रात। ज़ोरों की बारिश। हमेशा की भाँति बिजली का गुल हो जाना। रात के गहराने...
अन्तिम प्रहर
है वही अन्तिम प्रहर
सोयी हुई हैं हरकतें
इन खनखनाती बेड़ियों में लिपटकर
है वही अन्तिम प्रहर
है वही मेरे हृदय में एक चुप-सी
कान में आहट किसी की
थरथराती...
रात सुनसान है
मेज़ चुप-चाप, घड़ी बंद, किताबें ख़ामोश
अपने कमरे की उदासी पे तरस आता है
मेरा कमरा जो मेरे दिल की हर इक धड़कन को
साल-हा-साल से चुपचाप गिने...
नींद क्यों रात-भर नहीं आती
रात को सोना
कितना मुश्किल काम है
दिन में जागने जैसा भी मुश्किल नहीं
पर, लेकिन तक़रीबन उतना ही
न कोई पत्थर तोड़ा दिन-भर
न ईंट के भट्ठे में...
पूरा दुःख और आधा चाँद
पूरा दुःख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद
दिन में वहशत बहल गई
रात हुई और निकला चाँद
किस मक़्तल से गुज़रा होगा
इतना सहमा-सहमा चाँद
यादों...
नींद
रात ख़ूबसूरत है
नींद क्यूँ नहीं आती!
दिन की ख़शम-गीं नज़रें
खो गईं सियाही में
आहनी कड़ों का शोर
बेड़ियों की झंकारें
क़ैदियों की साँसों की
तुंद-ओ-तेज़ आवाज़ें
जेलरों की बदकारी
गालियों की...
पिछली रात की वह प्रात
तुम्हारी आँख के आँसू हमारी आँख में
तुम्हारी आँख मेरी आँख में
तुम्हारा धड़कता सौन्दर्य
मेरी पसलियों की छाँव में
तुम्हारी नींद मेरे जागरण के पार्श्व में
तुम्हारी करवटें...
चाँद-रात
गए बरस की ईद का दिन क्या अच्छा था
चाँद को देखके उसका चेहरा देखा था
फ़ज़ा में 'कीट्स' के लहजे की नरमाहट थी
मौसम अपने रंग...
नींद में भटकता हुआ आदमी
नींद की एकान्त सड़कों पर भागते हुए आवारा सपने
सेकेण्ड शो से लौटती हुई बीमार टैक्सियाँ
भोथरी छुरी जैसी चीख़ें
बेहोश औरत की ठहरी हुई आँखों की...