Tag: Nitesh Vyas
त्रस्त एकान्त
स्थानान्तरण से त्रस्त एकान्त
खोजता है निश्चित ठौर
भीतर का कुछ
निकल भागना चाहता
नियत भार उठाने वाले कंधों
और निश्चित दूरी नापने वाले
लम्बे क़दमों को छोड़
दिन के हर...
ओ निशा!
ओ निशा!
अब तो तमस् को पात्र में भरकर उड़ेलो
और जो तारा-गणों की मालिका सजती तुम्हारे कण्ठ पर, उसको उतारो
मालिका से ना रहे अब मोह...
जाते-जाते समेट ले जाऊँगा
मैंने सबसे पहला युद्ध
अपनी देह से लड़ा और उसके बाद
न जाने कितने युद्धों से
बच निकल आया हूँ मैं,
न जाने कितनी त्रासदियों को दिया है मैंने चकमा
किसी...
कविताएँ – मई 2020
चार चौक सोलह
उन्होंने न जाने कितनी योनियाँ पार करके
पायी थी दुर्लभ मनुष्य देह
पर उन्हें क्या पता था कि
एक योनि से दूसरी योनि में पहुँचने के
कालान्तर से...
नितेश व्यास की कविताएँ
बाँझ चीख़ें
उनकी बाँझ चीख़ें
लटक रही हैं
आज भी
उस पेड़ से
जहाँ बो दिया था तुमने
स्वयं को
इस निर्मम धरती
और
निर्दय आकाश के बीच
कहीं।
नम सलवटें
धूप ही आती है
न
बादल ही बरसते...