Tag: Om Prakash Valmiki
युग-चेतना
मैंने दुःख झेले
सहे कष्ट पीढ़ी-दर-पीढ़ी इतने
फिर भी देख नहीं पाए तुम
मेरे उत्पीड़न को
इसलिए युग समूचा
लगता है पाखण्डी मुझको।
इतिहास यहाँ नक़ली है
मर्यादाएँ सब झूठी
हत्यारों की रक्तरंजित...
सदियों का संताप
दोस्तो!
बिता दिए हमने हज़ारों वर्ष
इस इंतज़ार में
कि भयानक त्रासदी का युग
अधबनी इमारत के मलबे में
दबा दिया जाएगा किसी दिन
ज़हरीले पंजों समेत
फिर हम सब
एक जगह...
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें
धकेलकर गाँव से बाहर कर दिया जाए
पानी तक न लेने दिया जाए कुएँ से
दुत्कारा-फटकारा जाए चिलचिलाती दोपहर में
कहा जाए तोड़ने को पत्थर
काम के बदले
दिया जाए खाने...
शम्बूक का कटा सिर
जब भी मैंने
किसी घने वृक्ष की छाँव में बैठकर
घड़ी भर सुस्ता लेना चाहा,
मेरे कानों में
भयानक चीत्कारें गूँजने लगीं
जैसे हर एक टहनी पर
लटकी हो लाखों...
मौत का ताण्डव
1985 में देहरादून में काम करते समय ओमप्रकाश वाल्मीकि के आँखों के सामने कुछ मज़दूरों की मौत हो गयी थी, जिसके बाद फ़ैक्ट्री, इंजीनियर...
अँधेरे में शब्द
रात गहरी और काली है
अकालग्रस्त त्रासदी जैसी
जहाँ हज़ारों शब्द दफ़न हैं
इतने गहरे
कि उनकी सिसकियाँ भी
सुनायी नहीं देतीं
समय के चक्रवात से भयभीत होकर
मृत शब्द को पुनर्जीवित करने...
कोई ख़तरा नहीं
शहर की सड़कों पर
दौड़ती-भागती गाड़ियों के शोर में
सुनायी नहीं पड़तीं सिसकियाँ
बोझ से दबे आदमी की
जो हर बार फँस जाता है
मुखौटों के भ्रमजाल में
जानते हुए भी...
मुट्ठी भर चावल
अरे, मेरे प्रताड़ित पुरखों
तुम्हारी स्मृतियाँ
इस बंजर धरती के सीने पर
अभी ज़िन्दा हैं
अपने हरेपन के साथ
तुम्हारी पीठ पर
चोट के नीले गहरे निशान
तुम्हारे साहस और धैर्य को
भुला...
पच्चीस चौका डेढ़ सौ
"सुदीप जब भी किसी को गिड़गिड़ाते देखता है तो उसे अपने पिताजी की छवि याद आने लगती है!"
रौशनी के उस पार
रौशनी के उस पार
खुली चौड़ी सड़क से दूर
शहर के किनारे
गन्दे नाले के पास
जहाँ हवा बोझिल है
और मकान छोटे हैं
परस्पर सटे हुए
पतली वक्र-रेखाओं-सी गलियाँ
जहाँ खो...
घृणा तुम्हें मार सकती है
चाहे संकीर्ण कहो या पूर्वाग्रही
मैं जिस टीस को बरसों-बरस
सहता रहा हूँ
अपनी त्वचा पर
सुई की चुभन जैसे,
उसका स्वाद एक बार चखकर देखो
हिल जाएगा पाँव तले...
यह अंत नहीं
"छेड़-छाड़ी हुई है... बलात्कार तो नहीं हुआ... तुम लोग बात का बतंगड़ बना रहे हो। गाँव में राजनीति फैलाकर शांति भंग करना चाहते हो। मैं अपने इलाके में गुंडागर्दी नहीं होने दूँगा... चलते बनो।"