Tag: Om Prakash Valmiki

Om Prakash Valmiki

विध्वंस बनकर खड़ी होगी नफ़रत

तुमने बना लिया जिस नफ़रत को अपना कवच विध्वंस बनकर खड़ी होगी रू-ब-रू एक दिन तब नहीं बचेंगी शेष आले में सहेजकर रखी बासी रोटियाँ पूजाघरों में अगरबत्तियाँ,...
Om Prakash Valmiki

बस्स! बहुत हो चुका

जब भी देखता हूँ मैं झाड़ू या गन्दगी से भरी बाल्टी कनस्तर किसी हाथ में मेरी रगों में दहकने लगते हैं यातनाओं के कई हज़ार वर्ष एक साथ जो फैले हैं...
Om Prakash Valmiki

खेत उदास हैं

चिड़िया उदास है जंगल के खालीपन पर, बच्चे उदास हैं भव्य अट्टालिकाओं के खिड़की-दरवाज़ों में कील की तरह ठुकी चिड़िया की उदासी पर, खेत उदास हैं भरपूर फ़सल के बाद भी सिर...
Om Prakash Valmiki

जूता

हिकारत भरे शब्द चुभते हैं त्वचा में सुई की नोक की तरह जब वे कहते हैं— साथ चलना है तो क़दम बढ़ाओ जल्दी-जल्दी जबकि मेरे लिए क़दम बढ़ाना पहाड़ पर चढ़ने...
Om Prakash Valmiki

कविता और फ़सल

ठण्डे कमरों में बैठकर पसीने पर लिखना कविता ठीक वैसा ही है जैसे राजधानी में उगाना फ़सल कोरे काग़ज़ों पर। फ़सल हो या कविता पसीने की पहचान हैं दोनों ही। बिना पसीने...
Om Prakash Valmiki

ठाकुर का कुआँ

'Thakur Ka Kuan', a poem by Omprakash Valmiki चूल्‍हा मिट्टी का मिट्टी तालाब की तालाब ठाकुर का भूख रोटी की रोटी बाजरे की बाजरा खेत का खेत ठाकुर का बैल ठाकुर का हल...
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