Tag: Om Purohit Kagad

Om Purohit Kagad

धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र

स्वघोषित उद्देश्यों को प्रतीक मान मन चाहे कपड़ों से निर्मित ध्वज दूर आसमान की ऊँचाइयों में— फहराने भर से लोकतंत्र की जड़ें भला कैसे हरी रहेंगी? तुम शायद नहीं जानते भरे बादल को पेट...
Om Purohit Kagad

फिर कविता लिखें

आओ आज फिर कविता लिखें कविता में लिखें प्रीत की रीत ...जो निभ नहीं पायी या कि निभायी नहीं गई! कविता में आगे रोटी लिखें जो बनायी तो गई मगर खिलायी नहीं गई! रोटी के बाद कफ़न-भर कपड़ा...
Om Purohit Kagad

कविता सपनों की

वर्ण-वर्ण संजोकर गढ़ी थी मैंने अपने सपनों की कविता। परन्तु कितनी निर्दयता से किया पोस्ट्मार्टम कथित विशेषज्ञों ने, पंक्तियाँ वाक्य शब्द बिखेर कर परखे गए। मुझे दुःख न हुआ दुःख तो तब हुआ जब— शब्दों का संधिविच्छेद कर उन...
Om Purohit Kagad

हम बोले रोटी

उन्होंने कहा— देखो! हमने देखा! ...वे ख़ुश हुए। उन्होंने कहा— सुनो! वे बहुत ख़ुश हुए! उन्होंने कहा— खड़े रहो! हम खड़े रहे! वे बहुत ही ख़ुश हुए। उन्होंने कहा— बोलो! हमने कहा— 'रोटी'! वे नाराज़ हुए! बहुत नाराज हुए!! बहुत ही...
Om Purohit Kagad

पुरुष का जन्म

काँसे के थाल घनघनाए चारदीवारी में ऊँची अटारी पर पुरुष के जन्म पर। स्त्री के हाथों का कोमल स्पर्श शायद गिरवी था पुरुष के यहाँ तभी तो थाली पर पड़ती थाप में पौरुष था मुखर! उस दिन दिन-भर बँटीं भरपूर मिठाइयाँ,...
Om Purohit Kagad

सन्नाटों में स्त्री

'Sannaton Mein Stree', a poem by Om Purohit Kagad दिन भर आँखों से ओझल रही मासूम स्त्री को रात के सन्नाटों में क्यों करते हैं याद ऐ दम्भी पुरुष! दिन में खेलते...
Om Purohit Kagad

वह लड़की

'Wah Ladki', a poem by Om Purohit 'Kagad' सामने के झोपड़े में रहने वाली वह लड़की अब सपने नहीं देखती। वह जानती है कि सपने में भी पुरुष की सत्ता...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)