Tag: Patriarchal Rituals

Woman in front of a door

गर्भगृह के बाहर खड़ी स्त्री

ऋतु-स्नान के पश्चात् लहरा रहे थे उसके चमकीले रेशमी केश उसका सद्य स्नात सौंदर्य भोर की प्रथम रश्मि-सा फूटकर प्रविष्ट हो रहा था सृष्टि के सूक्ष्म कण में तुम बढ़े...
Rabindranath Tagore

अवगुंठन

क्या अपने से छोटी उम्र के पुरुष से प्रेम करने वाली स्त्री, एक दिन विवाहित और दूसरे दिन विधवा होने वाली स्त्री, सती की चिता से उठकर आने वाली स्त्री, भाग्य की निर्दयता का चिह्न चेहरे पर लिए घूमने वाली स्त्री में भी स्वाभिमान हो सकता है? समाज का एक अंश शायद यह न सोच पाए लेकिन टैगोर की इस कहानी में इस स्वाभिमान की एक झलक दिखाई देती है! यह भी कहना उचित होगा कि यह केवल स्वाभिमान भी नहीं था, अपने भाग्य पर रोष भी था! पढ़िए! :)
Woman in Sari, Pallu

स्त्रीधन

भारतीय समाज में बेटी की शादी या बहू के आगमन की तैयारियाँ सालों पहले से शुरू हो जाती हैं, लेकिन इन 'भौतिक' दिखने वाली तैयारियों के पीछे उन्हें क्या-क्या संजोकर रखने के लिए दे दिया जाता है, इसका अंदाज़ा खुद यह समाज आज तक नहीं लगा पाया!
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