Tag: Patriarchal Rituals
गर्भगृह के बाहर खड़ी स्त्री
ऋतु-स्नान के पश्चात्
लहरा रहे थे उसके चमकीले रेशमी केश
उसका सद्य स्नात सौंदर्य
भोर की प्रथम रश्मि-सा
फूटकर प्रविष्ट हो रहा था
सृष्टि के सूक्ष्म कण में
तुम बढ़े...
अवगुंठन
क्या अपने से छोटी उम्र के पुरुष से प्रेम करने वाली स्त्री, एक दिन विवाहित और दूसरे दिन विधवा होने वाली स्त्री, सती की चिता से उठकर आने वाली स्त्री, भाग्य की निर्दयता का चिह्न चेहरे पर लिए घूमने वाली स्त्री में भी स्वाभिमान हो सकता है? समाज का एक अंश शायद यह न सोच पाए लेकिन टैगोर की इस कहानी में इस स्वाभिमान की एक झलक दिखाई देती है! यह भी कहना उचित होगा कि यह केवल स्वाभिमान भी नहीं था, अपने भाग्य पर रोष भी था! पढ़िए! :)
स्त्रीधन
भारतीय समाज में बेटी की शादी या बहू के आगमन की तैयारियाँ सालों पहले से शुरू हो जाती हैं, लेकिन इन 'भौतिक' दिखने वाली तैयारियों के पीछे उन्हें क्या-क्या संजोकर रखने के लिए दे दिया जाता है, इसका अंदाज़ा खुद यह समाज आज तक नहीं लगा पाया!