Tag: Patriarchy

Yashasvi Pathak

कविताएँ: दिसम्बर 2021

अंशतः अमान्य विचारों का समीकरण वह प्रभावकारी नहीं है उसमें संवेदन को परिवर्तित करने की क्षमता नहीं उससे समाज नहीं बनता है उसके स्रष्टा दो-तीन प्रकार के नहीं...
Woman, Painted Face, Angry

बातचीत: ‘मिसॉजिनि क्या है?’

पढ़िए तसनीफ़ और शिवा की मिसॉजिनि (Misogyny (शाब्दिक अर्थ: स्त्री द्वेष)) पर एक विस्तृत बातचीत। तसनीफ़ उर्दू शायरी करते रहे हैं, उन्होंने एक नॉविल...
Usha Dashora

पितृसत्ता, तुम्हारी रीढ़ कौन है

आसमान के घर से एक बड़ा-सा पत्थर मोहल्ले के बीचों-बीच गिरा देखते ही देखते वह शीर्ष मंच पर आसीन हो गया औरतें जो साहसी सड़कें बनकर चल...
Sara Shagufta

औरत और नमक

इज़्ज़त की बहुत-सी क़िस्में हैं घूँघट, थप्पड़, गन्दुम इज़्ज़त के ताबूत में क़ैद की मेख़ें ठोंकी गई हैं घर से लेकर फ़ुटपाथ तक हमारा नहीं इज़्ज़त हमारे गुज़ारे...
Woman, Window, Bus, Train

स्त्री और पुरुष

स्त्री को पुरुष की दृष्टि से देखने की यह दीर्घकालिक परम्परा जो कि प्रारम्भ हुई तुम्हारे अगणित पितामहों के द्वारा, आज भी विस्तार पा रही तुम्हारे ही सदृश अनेक योग्य,...
Father Daughter, Girl, Kid

मुहर-भर रहे पिता

उन लड़कियों ने जाना पिता को एक अडिग आदेश-सा, एक मुहर-भर रहे पिता बेटियों के दस्तावेज़ों पर। कहाँ जाना, क्या खाना, क्या पढ़ना, निर्धारित कर, पिता ने निभायीं ज़िम्मेदारियाँ अपनी, बहरे रहे...
Pallavi Vinod

ये डायनें

पितृसत्ता को पोषित करती औरतों ने जाना ही नहीं कि उनके शब्दकोष में 'बहनापा' जैसा भी कोई शब्द है जिसे विस्तार देना चाहिए छठ, जियुतिया करती माँएँ हर बेटी...
Sadness, Grief, Painting, Woman

आख़िर स्त्रियों को कितना सहना चाहिए

एक दिन मैं बारी-बारी से उन सारी जीवट और कर्मठ स्त्रियों पर कविता लिखूँगी जो एकदम नमक की तरह होती हैं खारेपन से बनी होती है उनकी देह कविता...
Woman behind a leaf

तुम स्त्री हो

'Tum Stree Ho', a poem by Mahima Shree सावधान रहो, सतर्क रहो किससे? कब? कहाँ? हमेशा रहो! हरदम रहो! जागते हुए भी, सोते हुए भी। क्या कहा! ख़्वाब देखती हो? उड़ना चाहती...
Woman in ghoonghat

पितृसत्ता की बेड़ियों में जकड़ी स्त्रियाँ

'Pitrasatta Ki Bediyon Mein Jakdi Striyaan', a poem by Anupama Vindhyavasini पितृसत्ता की बेड़ियों में जकड़ी स्त्रियाँ रोज़ सुबह बुहार देती हैं अपनी समस्त इच्छाएँ और फेंक देती हैं स्वप्नों...
Rahul Boyal

पौरुष

'Paurush', Hindi Kavita by Rahul Boyal मयूख होकर फूट पड़ेंगी प्रज्वलित मार्तण्ड से मेरी संवेदनायें, मुझको कर देंगी भस्म देखना तुम यूँ ही छिपे रहना अपने पौरुषीय...
Om Purohit Kagad

सन्नाटों में स्त्री

'Sannaton Mein Stree', a poem by Om Purohit Kagad दिन भर आँखों से ओझल रही मासूम स्त्री को रात के सन्नाटों में क्यों करते हैं याद ऐ दम्भी पुरुष! दिन में खेलते...
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