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ईश्वर रे, मेरे बेचारे!
अपने सम्बन्ध में कुछ लिखने की बात मन में आते ही मन के पर्दे पर एक ही छवि 'फेड इन' हो जाया करती है...
रसप्रिया
धूल में पड़े क़ीमती पत्थर को देखकर जौहरी की आँखों में एक नयी झलक झिलमिला गई—अपरूप-रूप!
चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया की...
ठेस
"बिना मजदूरी के पेट-भर भात पर काम करने वाला कारीगर। दूध में कोई मिठाई न मिले, तो कोई बात नहीं, किंतु बात में जरा भी झाल वह नहीं बर्दाश्त कर सकता।"
लाल पान की बेगम
बिरजू की माँ हँस कर बोली, "ताखे पर तीन-चार मोटे शकरकंद हैं, दे दे बिरजू को चंपिया, बेचारा शाम से ही..."
"बेचारा मत कहो मैया, खूब सचारा है..." अब चंपिया चहकने लगी, "तुम क्या जानो, कथरी के नीचे मुँह क्यों चल रहा था बाबू साहब का!"
"ही-ही-ही!"
‘मारे गये गुलफ़ाम’ उर्फ़ ‘तीसरी क़सम’
"आप मुझे गुरू जी मत कहिए।"
"तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है, एक अच्छर सिखानेवाला भी गुरू और एक राग सिखानेवाला भी उस्ताद!"
"इस्स! सास्तर-पुरान भी जानती हैं! ...मैंने क्या सिखाया? मैं क्या ...?"
हीरा हँस कर गुनगुनाने लगी - "हे-अ-अ-अ- सावना-भादवा के-र ...!"
हिरामन अचरज के मारे गूँगा हो गया। ...इस्स! इतना तेज जेहन! हू-ब-हू महुआ घटवारिन!
अपने ज़िले की मिट्टी से
कि अब तू हो गई मिट्टी सरहदी
इसी से हर सुबह कुछ पूछता हूँ
तुम्हारे पेड़ से, पत्तों से
दरिया औ' दयारों से
सुबह की ऊंघती-सी, मदभरी ठंडी...
पंचलाइट (पंचलैट)
"मुनरी की माँ ने पंचायत से फरियाद की थी कि गोधन रोज उसकी बेटी को देखकर 'सलम-सलम' वाला सलीमा का गीत गाता है- 'हम तुमसे मोहोब्बत करके सलम!' पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था। दूसरे गाँव से आकर बसा है गोधन, और अब टोले के पंचों को पान-सुपारी खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया। परवाह ही नहीं करता है। बस, पंचों को मौका मिला। दस रुपया जुरमाना! न देने से हुक्का-पानी बन्द। आज तक गोधन पंचायत से बाहर है।"