Tag: Poem on Bird

Subhadra Kumari Chauhan

कोयल

देखो कोयल काली है पर मीठी है इसकी बोली, इसने ही तो कूक-कूककर आमों में मिश्री घोली। कोयल! कोयल! सच बतलाना क्या संदेसा लायी हो, बहुत दिनों के बाद आज...

कोकिल

"इसमें एक और गुण भाई, जिससे यह सबके मन भाई। यह खेतों के कीड़े सारे, खा जाती है बिना बिचारे।"
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