Tag: Poem on Labours

Labour, Woman

घर लौटते मज़दूर

बड़े शहर से गांव लौटते मज़दूर कभी पूरा नहीं लौटते शहर में छोड़ कर आते हैं वो पुराने बरतन, फटी चटाई, स्टोव इसके साथ ही छूटे रह जाते...
Suryakant Tripathi Nirala

वह तोड़ती पत्थर

'Wah Todti Patthar', a poem by Suryakant Tripathi Nirala वह तोड़ती पत्थर! देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले...
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