Tag: poem
गद्य-वद्य कुछ लिखा करो
गद्य-वद्य कुछ लिखा करो। कविता में क्या है।
आलोचना जगेगी। आलोचक का दरजा –
मानो शेर जंगली सन्नाटे में गरजा
ऐसा कुछ है। लोग सहमते हैं। पाया...
मैं कविताएँ क्यों लिखती हूँ
'Main Kavitaaein Kyon Likhti Hoon', a poem by Harshita Panchariya
प्रेम को सुरक्षित रखने के
प्रयास में
जला देना चाहती हूँ कुछ कविताएँ
ताकि हवा में प्रेम की...
जिस तरह आती हो तुम
'Jis Tarah Aati Ho Tum', a poem by Vijay Rahi
जिस तरह आती हो तुम
अपने इस पागल कवि से मिलने
रोज़-रोज़।
जब मिलती हो, ख़ूब मिलती हो,
बाथ...
गुड्डे का जन्मदिन
कहो तो! तुम और मैं
कैसे तुम्हारा जन्मदिन मना लें?
चलो! चाँद से कुछ गप्पे करें
सितारों की महफ़िल सजा लें।
बन जाएँ फिर से हम
गुड्डा और गुड़िया
चलो! लें...
मामी निशा
चंदा मामा गए कचहरी, घर में रहा न कोई,
मामी निशा अकेली घर में कब तक रहती सोई!
चली घूमने साथ न लेकर कोई सखी-सहेली,
देखी उसने...
जा चुके लोग
'Ja Chuke Log', a poem by Ritu Niranjan
जा चुके लोग अक्सर
चले जाने के बावजूद
बचे रह जाते हैं जीवन में
वक़्त के जिस्म पर
खुरचे हुए निशानों...
कविता कैसी होती है
यहां निराला विक्षिप्त हो जाते हैं
मुक्तिबोध कंगाली में मर जाते हैं
जॉन एलिया खून थूकते हैं
गोरख पांडे आत्महत्या कर लेते हैं
सर्दी की इक रात में
मजाज़...