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तीन चित्र : स्वप्न, इनकार और फ़ुटपाथ पर लेटी दुनिया
1
हम मृत्यु-शैय्या पर लेटे-लेटे
स्वप्न में ख़ुद को दौड़ता हुआ देख रहे हैं
और हमें लगता है हम जी रहे हैं
हम अपनी लकड़ियों में आग के...
मेहमान
शीतला प्रसाद का हाथ हवा में ही रुक गया। संध्या-स्नान-ध्यान के बाद चौके में पीढ़े पर बैठे बेसन की रोटी और सरसों के साग...
क़ब्ल-अज़-तारीख़
सुबह से माँ के घुटनों का दर्द तेज़ था। पिछली रात देसी बाम, गरम पानी और तेल का कोई ख़ास असर नहीं हुआ। इधर...
एदुआर्दो गालेआनो की चुनी हुई रचनाएँ (‘आग की यादें’ से)
किताब: 'आग की यादें'
प्रकाशक: गार्गी प्रकाशन
सम्पादक: रेयाज़ुल हक़
अनुवाद : पी. कुमार मंगलम
चयन एवं प्रस्तुति : आमिर
साइकिल
साइकिलों ने दुनिया में औरतों को आज़ाद करने में...
ख़ून
उनका इन्तक़ाल अचानक हुआ था।
उन दिनों अपने फ़्लैट में वे अकेले थे। बीवी बेटे के पास कनाडा गई हुई थीं। फ़्लैट में उनके अलावा...
जॉन गुज़लॉवस्की की कविता ‘मेरे लोग’
जॉन गुज़लॉवस्की (John Guzlowski) नाज़ी यातना कैम्प में मिले माता-पिता की संतान हैं। उनका जन्म जर्मनी के एक विस्थापित कैम्प में हुआ। उनके माता-पिता...
पाँव कटे बिम्ब
घिसटते हैं मूल्य
बैसाखियों के सहारे
पुराने का टूटना
नये का बनना
दीखता है—सिर्फ़ डाक-टिकटों पर
लोकतंत्र की परिभाषा
क्या मोहताज होती है
लोक-जीवन के उजास हर्फ़ों की?
तो फिर क्यों दीखते...
साढ़े तीन आने
"मैंने क़त्ल क्यों किया। एक इंसान के ख़ून में अपने हाथ क्यों रंगे, यह एक लम्बी दास्तान है। जब तक मैं उसके तमाम अवाक़िब...
निवाला
माँ है रेशम के कारख़ाने में
बाप मसरूफ़ सूती मिल में है
कोख से माँ की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है
जब...
बोलता लिहाफ़
गहरी रात गए एक सौदागर, घोड़ा-गाड़ी पर बैठकर एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव पर जा रहा था। बला की सरदी पड़ रही थी और...
घर
अब मैं घर में पाँव नहीं रखूँगा कभी
घर की इक-इक चीज़ से मुझको नफ़रत है
घर वाले सब के सब मेरे दुश्मन हैं
जेल से मिलती-जुलती...
गोली दाग़ो पोस्टर
यह उन्नीस सौ बहत्तर की बीस अप्रैल है या
किसी पेशेवर हत्यारे का दायाँ हाथ या किसी जासूस
का चमड़े का दस्ताना या किसी हमलावर की दूरबीन...