Tag: ग़रीबी
लाल रिबन
मेरे गाँव में सफ़ेद संगमरमर से बनी दीवारें
लोहे के भालों की तरह उगी हुई हैं
जिनकी नुकीली नोकों में नीला ज़हर रंगा हुआ है
खेजड़ी के ईंट-चूने...
ग़ायब लोग
हम अक्षर थे
मिटा दिए गए
क्योंकि लोकतांत्रिक दस्तावेज़
विकास की ओर बढ़ने के लिए
हमारा बोझ नहीं सह सकते थे
हम तब लिखे गए
जब जन गण मन लिखा...
आग पेटी
फिर से खाया धोखा इस बार
रत्ती भर नहीं आयी समझदारी
ले आया बड़े उत्साह से
सीली हुई बुझे रोगन वाली दियासलाई घर में
समझकर सचमुच की आग पेटी
बिल्कुल...
बैलगाड़ी
जा रही है गाँव की कच्ची सड़क से
लड़खड़ाती बैलगाड़ी!
एक बदक़िस्मत डगर से,
दूर, वैभवमय नगर से,
एक ही रफ़्तार धीमी,
एक ही निर्जीव स्वर से,
लादकर आलस्य, जड़ता...
सदाक़त का शिनाख़्ती कार्ड
सदाक़त देखते ही देखते
चौरसी से कुरेद लेता सख़्त से सख़्त काठ पर
ख़ूबसूरत बेल-बूटे, नाचता हुआ मोर
छायादार पेड़, फुदकती गिलहरी, उड़ती तितली
खिला हुआ फूल, खपरेल वाला...
फीकी रोटी
बचपन में मैं मिट्टी खाता था,
बड़ा अच्छा लगता था इसका स्वाद
फिर बड़ा हुआ तो मालूम हुआ
खाने के लिए मिट्टी नहीं
रोटी होती है
और
रोटी ज़मीन पर...
और कितनी सुविधा लेगें
हर त्रासदी में ये पेट खोलकर बैठ जाते हैं
बहुत बड़ा होता है इनका पेट
इतना बड़ा कि ख़रबों के ख़र्च से बना स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी भी...
जली हुई रस्सी
अपने बर्फ़ जैसे हाथों से वाहिद ने गर्दन से उलझा हुआ मफ़लर निकाला और सफ़िया की ओर फेंक दिया। पलक-भर वाहिद की ओर देखकर...
अपनी केवल धार
"जब तक इंसान खाना खाएगा, तब तक उसको तीन चीज़ों की ज़रूरत रहेगी ही। खाने की, आग की और चाक़ू की। खाना किसान उगाता...
एकमात्र रोटी, तुम्हारे साथ जीवन
एकमात्र रोटी
पाँचवीं में पढ़ता था
उमर होगी कोई
दस एक साल मेरी।
एक दिन स्कूल से आया
बस्ता पटका, रोटी ढूँढी
घर में बची एकमात्र रोटी को
मेरे हाथ से...
फटेहाल का ख़ज़ाना
दुनिया के नामचीन फ़ोटोग्राफ़र
भटकते हैं
भूखे-नंगे लोगों की बस्ती में
और उन अभावग्रस्त लोगो में से
एक चेहरा चुनते हैं
ऐसा चेहरा, जो निर्दिष्ट कर दे
सारी कहानी उस...
घुँघरू परमार की कविताएँ
शीर्षासन
देश, जो कि हमारा ही है
इन दिनों
शीर्षासन में है।
इसे सीधा देखना है तो
आपको उल्टा होना होगा।
माथे में बारूद घुमड़ता रहता अक्सर
आधे हाथ नीचे धंसे...