Tag: ग़रीबी

Harish Bhadani

रोटी नाम सत है

रोटी नाम सत है खाए से मुगत है ऐरावत पर इन्दर बैठे बाँट रहे टोपियाँ झोलियाँ फैलाए लोग भूग रहे सोटियाँ वायदों की चूसणी से छाले पड़े जीभ पर रसोई में लाव-लाव भैरवी...

इकत्तीसवीं सदी में

यह व्यंग्य मैं इकत्तीसवीं सदी में लिख रहा हूँ, ईसवी सन तीन हज़ार बीस में। आधुनिक व्यंग्यकार टाइम मशीन के सहारे एक हज़ार साल...
jasvir tyagi

जसवीर त्यागी की कविताएँ

प्रकृति सबक सिखाती है घर के बाहर वक़्त-बेवक़्त घूम रहा था विनाश का वायरस आदमी की तलाश में आदमी अपने ही पिंजरे में क़ैद था प्रकृति, पशु-पक्षी उन्मुक्त होकर हँस रहे थे परिवर्तन का पहिया घूमता...
Safdar Hashmi

रोग पुराण

ये सूखे बदन और ये बीमार बचपन जवाँ हैं अपाहिज, बुढ़ापा अजीरन ये भारत की जनता, ये जनता का जीवन है कैसा ये जीवन ज़रा ये बताओ। ये...
Javed Akhtar

कच्ची बस्ती

गलियाँ और गलियों में गलियाँ छोटे घर नीचे दरवाज़े टाट के पर्दे मैली, बद-रंगी दीवारें दीवारों से सर टकराती कोई गाली गलियों के सीने पर बहती गन्दी नाली गलियों के माथे पर बहता आवाज़ों का...
Loudspeaker

मुझे नहीं पता

जब मुर्ग़ा बाँग देता है तब सवेरा होता है या जब सबेरा होता है तब मुर्ग़ा बाँग देता है इसकी फ़िलॉसफ़ी क्या है? मुझे नहीं पता! पर पिछले कुछ दशकों में मुर्ग़ानुमा...
Lockdown Migration, Labour

राहुल बोयल की कविताएँ

1 एक देवी की प्रतिमा है - निर्वसन पहन लिया है मास्क मुख पर जबकि बग़ल में पड़ा है बुरखा देवताओं ने अवसान की घड़ी में भी जारी रखी...
Tribe, Village, Adivasi, Labour, Tribal, Poor

गोबिन्द प्रसाद की कविताएँ

आने वाला दृश्य आदमी, पेड़ और कव्वे— यह हमारी सदी का एक पुराना दृश्य रहा है इसमें जो कुछ छूट गया है मसलन पुरानी इमारतें, खण्डहरनुमा बुर्जियाँ और किसी...
Lower Middle Class Home

नवयुग आया

सूरज डूबा साँझ हुई गुवाले आए गाँव में, चन्दा सोया तारे नाचे घुँघरू बाँधे पाँव में। चौपालों पर बूढ़े बैठे चर्चाओं का दौर है, लूटपाट और तोड़-फोड़ का गाँव-गाँव में शोर है। पानी महँगा ईंधन महँगा यह कैसा...
Indian Slum People, Poverty

दस की भरी तिजोरी

सौ में दस की भरी तिजोरी, नब्बे ख़ाली पेट झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट। बहुत बुरा है आज देश में लोकतन्त्र का हाल, कुत्ते खींच रहे...
Om Purohit Kagad

हम बोले रोटी

उन्होंने कहा— देखो! हमने देखा! ...वे ख़ुश हुए। उन्होंने कहा— सुनो! वे बहुत ख़ुश हुए! उन्होंने कहा— खड़े रहो! हम खड़े रहे! वे बहुत ही ख़ुश हुए। उन्होंने कहा— बोलो! हमने कहा— 'रोटी'! वे नाराज़ हुए! बहुत नाराज हुए!! बहुत ही...
Common Man

अम्बिकेश कुमार की कविताएँ

Poems: Ambikesh Kumar विकल्प उसने खाना माँगा उसे थमा दिया गया मानवविकास सूचकाँक उसने छत माँगी हज़ारों चुप्पियों के बाद उसे दिया गया एक पूरा लम्बा भाषण उसने वस्त्र माँगा मेहनताना उसे...
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