Tag: ग़रीबी

माँ का चेहरा

'Maa Ka Chehra', a poem by Anupama Mishra आँखें उसकी और बड़ी हो गईं जब देखा रंग-बिरंगा लहँगा, किनारों पर जिसके लगे हुए थे सुर्ख़ सुनहले रंग के...
Girl, Beggar, Hunger, Kid

उदासी की बीन

'Udasi Ki Been', a poem by Rashmi Saxena अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार समारोह के बाहर कतारबद्ध खड़े शताब्दियों से भूख से बिलखते बच्चे अपनी बारी की प्रतीक्षा में दम तोड़...
Baba Nagarjuna

मन करता है

'Man Karta Hai', a poem by Baba Nagarjun मन करता है : नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर-तट पर मैं खड़ा रहूँ यों भी क्या कपड़ा मिलता...
Prabhat

प्रभात की कविताएँ

क़स्बे का कवि वह कोई अधिकारी नहीं है कि लोग जी सर, हाँ सर कहते हुए काँपें उसके सामने नेता नहीं है कि इंसानों का समूह पालतू कुत्तों के...
Koduram Dalit

ग़रीबी, तू न यहाँ से जा

गरीबी, तू न यहाँ से जा! एक बात मेरी सुन, पगली बैठ यहाँ पर आ, गरीबी, तू न यहाँ से जा! चली जाएगी तू यदि तो दीनों के...
Jainendra Kumar

अपना अपना भाग्य

"इसे खाने के लिए कुछ देना चाहता था", अंग्रेजी में मित्र ने कहा- "मगर, दस-दस के नोट हैं।" मैंने कहा- "दस का नोट ही दे दो।" सकपकाकर मित्र मेरा मुँह देखने लगे- "अरे यार! बजट बिगड़ जाएगा। हृदय में जितनी दया है, पास में उतने पैसे तो नहीं हैं।"

दस का पुराना नोट

उम्र यही कोई साठ साल रही होगी। रंग सांवला और बाल पूरे सफेद हो चुके थे। पान खाती थी और पूरे ठसक से चलती...
Yashpal

परदा

मध्यमवर्गीय समाज एक छुपाव, एक परदा साथ लिए चलता है, जिसे हम अक्सर 'अपने घर की बात', 'अपने घर का हाल' कहकर सही ठहराते हैं.. इसी परदे की सच्चाई कहती है यशपाल की यह उत्कृष्ट कहानी 'परदा'!
Vinod Kumar Shukla

सबसे ग़रीब आदमी की

"सबसे गरीब बीमार आदमी के लिए सबसे सस्‍ता डॉक्टर भी बहुत महंगा है..।"
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