Tag: Prabhat

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अधिक प्रिय वजह

शरीर में दिल है सो धड़कता है मगर इन दिनों वजह दूसरी है धरती पर कोई है जिसके होने की आहट से यह धड़कने लगता है क्या अब ऐसा होगा कि शरीर...
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हमें नहीं पता

तुम अगर मिल सकती होतीं या मैं तुमसे मिल सकता होता तो ज़रूर मिल लेते बावजूद हमारे बीच फैले घने कोहरे के इसी में ढूँढते हुए हम एक-दूसरे...
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‘जीवन के दिन’ से कविताएँ

कविता संग्रह: 'जीवन के दिन' - प्रभात चयन व प्रस्तुति: अमर दलपुरा याद मैं ज़मीन पर लेटा हुआ हूँ पर बबूल का पेड़ नहीं है यहाँ मुझे उसकी याद...
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प्रभात की कविताएँ

प्रस्तुति: विजय राही तुम तुमने कहना नहीं चाहा लेकिन कहा पेड़ से बाँध दो इसे खाल उधेड़ो इसकी इच्छा पूरी करो बस्ती की। बाक़ी मुझे बेच दो या शादी करो रहूँगी तो इसी की कौन...
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प्रभात की कविताएँ

क़स्बे का कवि वह कोई अधिकारी नहीं है कि लोग जी सर, हाँ सर कहते हुए काँपें उसके सामने नेता नहीं है कि इंसानों का समूह पालतू कुत्तों के...
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