Tag: Prabhat
अधिक प्रिय वजह
शरीर में दिल है
सो धड़कता है
मगर इन दिनों
वजह दूसरी है
धरती पर कोई है
जिसके होने की आहट से
यह धड़कने लगता है
क्या अब ऐसा होगा
कि शरीर...
हमें नहीं पता
तुम अगर मिल सकती होतीं
या मैं तुमसे मिल सकता होता
तो ज़रूर मिल लेते
बावजूद हमारे बीच फैले घने कोहरे के
इसी में ढूँढते हुए हम एक-दूसरे...
‘जीवन के दिन’ से कविताएँ
कविता संग्रह: 'जीवन के दिन' - प्रभात
चयन व प्रस्तुति: अमर दलपुरा
याद
मैं ज़मीन पर लेटा हुआ हूँ
पर बबूल का पेड़ नहीं है यहाँ
मुझे उसकी याद...
प्रभात की कविताएँ
प्रस्तुति: विजय राही
तुम
तुमने कहना नहीं चाहा
लेकिन कहा
पेड़ से बाँध दो इसे
खाल उधेड़ो इसकी
इच्छा पूरी करो बस्ती की।
बाक़ी मुझे बेच दो
या शादी करो
रहूँगी तो इसी की
कौन...
प्रभात की कविताएँ
क़स्बे का कवि
वह कोई अधिकारी नहीं है कि लोग
जी सर, हाँ सर कहते हुए काँपें उसके सामने
नेता नहीं है कि इंसानों का समूह
पालतू कुत्तों के...