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कविताएँ — जुलाई 2020
शहर
1
किसी पुराने शहर की
गलियों के पत्थर उखड़ने लगे हैं
कुछ बदरंग इमारतें ढह गई हैं
बेवश एक बुज़ुर्ग
आसमान देखता है
और अपनी
मौत का इंतज़ार करता है
उस बुज़ुर्ग की...
उपस्थित
मैं जितना उपस्थित दिखता हूँ
उतना नहीं हूँ
मेरा एक बहुत बड़ा हिस्सा
मेरे ही भीतर किसी खदान में पड़ा है
उसे मैं बस नींद में आवाज़ देता...