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Kumar Mangalam

कविताएँ — जुलाई 2020

शहर 1 किसी पुराने शहर की गलियों के पत्थर उखड़ने लगे हैं कुछ बदरंग इमारतें ढह गई हैं बेवश एक बुज़ुर्ग आसमान देखता है और अपनी मौत का इंतज़ार करता है उस बुज़ुर्ग की...
Mirror, Reflection, Man, Identity

उपस्थित

मैं जितना उपस्थित दिखता हूँ उतना नहीं हूँ मेरा एक बहुत बड़ा हिस्सा मेरे ही भीतर किसी खदान में पड़ा है उसे मैं बस नींद में आवाज़ देता...
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