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Dinkar

सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है

सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है, दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती...
Shail Chaturvedi

मूल अधिकार?

क्या कहा—चुनाव आ रहा है? तो खड़े हो जाइए देश थोड़ा बहुत बचा है उसे आप खाइए। देखिए न, लोग किस तरह खा रहे हैं सड़के, पुल और फ़ैक्ट्रियों तक को पचा...
Gorakh Pandey

समझदारों का गीत

हवा का रुख़ कैसा है, हम समझते हैं हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं, हम समझते हैं हम समझते हैं ख़ून का मतलब पैसे की क़ीमत हम...
Man, Sleep, Painting, Abstract, Closed Eyes, Face

नींद और राजकुँवर

'Neend Aur Rajkunwar', a poem by Nirmal Gupt मैं सोते हुए खर्राटे लेता हूँ इस बात का मेरे सिवा सबको अरसे से पता है कोसों दूर राजमहल में...
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