Tag: Raghavendra Shukla
सम्वेदनाएँ अपवाद होने की ओर हैं
चिताओं की पंक्तियाँ
सवालों की पंक्तियों से अलग हो गईं
एक तरफ हाँफते रहे सवाल
कि क्यों उठी चिताएँ
चिताओं ने गर्दन घुमाकर देखा भी नहीं
उन्हें पता था
चिताओं और...
इक मरुस्थल इक समुंदर
इक मरुस्थल, इक समंदर।
पा रहा हूँ अपने अंदर।
यूँ तुम्हारे दिल से निकला
जैसे लौटा था सिकंदर।
फिर उड़ेंगे खग नए कल
हमसे सुंदर, तुमसे सुंदर।
थकके लौटे ज्वार...
सभ्यता के वस्त्र चिथड़े हो गए हैं
कुछ अंह का गान गाते रह गए।
कुछ सहमते औ' लजाते रह गए।
सभ्यता के वस्त्र चिथड़े हो गए हैं,
हम प्रतीकों को बचाते रह गए।
वेद मंत्रों...
सबसे उर्वर ज़मीन
"पाषाण तराशे गए,
सुंदर और सुंदर।
भगवान कहा गया उन्हें...
...भेद तब खुल गया
जब मूरत के सामने
मनुष्यता का सबसे जघन्य और बर्बर दृश्य भी
भगवान के चेहरे पर शिकन न ला सका।"
मिट्टी के पौधे में सपनों के फूल
मिट्टी के पौधे में सपनों के फूल,
जीवन की सेज पर किस्मत दुकूल।
किस्मत दुकूल ओढ़ सिहरे अनिश,
मौसम अनुकूल हो या मौसम प्रतिकूल।
सांसें रफू करते बीते...