Tag: Rahul Boyal
इन स्मृतियों को सहेज लो
"इन स्मृतियों को सहेज लो,
एक दिन ये कहीं अधिक दीप्त होंगी"
इतना ही कहा था तुमने
और मुझे वक़्त की बेरहमी का अंदाज़ा हो गया
इसलिए जितना...
जब तुम समझने लगो ज़िन्दगी
वो जहाँ पर मेरी नज़र ठहरी हुई है
वहाँ ग़ौर से देखो तुम
तुम भी वहाँ हो मेरे साथ
मेरे दाएँ हाथ की उँगलियों में
उलझी हुई हैं...
एक ही दृश्य में खोए हुए दो लोग
एक ही दृश्य में खोए हुए दो लोग
कुछ पल के लिए अदृश्य हो जाना चाहते थे
दुनिया के लिए
उस अकेले दृश्य में
बींध दिए जाने के स्वप्न...
मैं शब्द खो दूँगा एक दिन
मैं शब्द खो दूँगा एक दिन
एक दिन भाषा भी चुक जाएगी मेरी
मैं बस सुना करूँगा तुम्हें
कहूँगा कुछ नहीं
जबकि याद आएगी तुम्हारी
हो जाऊँगा बरी अपने आप से
तुम भी...
कविताएँ: दिसम्बर 2020
इतनी कम यात्राएँ क्यों
वह दुःस्वप्न के बाद टूटी हुई नींद थी
फिर नहीं आयी
मैं थके हुए किसी सूरज की तरह हो गया
जिसे बादलों की माँद...
कविताएँ: अगस्त 2020
सहूलियत
मुझे ज़िन्दगी के लिए सारी सहूलियत हासिल हुई
मगर ज़िन्दगी—
उसका कुछ अता-पता न था!
जो था इस जिस्म की नौ-नाली में
वह विज्ञान की दृष्टि से क़तई...
अन्तर्विरोधों का हल
तुम्हारे हाथों में थमे हुए ये धर्म-ध्वज
तुम्हारे होंठों पर चीख़ते हुए ये नारे
तुम्हारी चेतना में बैठे हुए भय के प्रतीक हैं
मैं प्रेम में तुम्हें...
शिशुओं का रोना
'Shishuon Ka Rona', a poem by Rahul Boyal
मेरी दृष्टि में
सभी शिशुओं के रोने का स्वर
तक़रीबन एक जैसा होता है
और हँसने की ध्वनि भी लगभग...
संक्रमण काल
'Sankrman Kaal', a poem by Rahul Boyal
संक्रमण से जूझते हुए
देश के लिए
सरकार के पास
नहीं है कोई योजना,
न कोई टीकाकरण कार्यक्रम
किया गया है तय,
दो भिन्न...