Tag: Ramashankar Yadav ‘Vidrohi’

Vidrohi

इक आग का दरिया है

विरह मिलन है, मिलन विरह है, मिलन विरह का, विरह मिलन का ही जीवन है। मैं कवि हूँ और तीन-तीन बहनों का भाई हूँ, हल्दी, दूब और गले की हँसुली...
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मोहनजोदाड़ो की आख़िरी सीढ़ी से

मैं साइमन न्याय के कटघरे में खड़ा हूँ प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दे! मैं वहाँ से बोल रहा हूँ जहाँ मोहनजोदाड़ो के तालाब की आख़िरी सीढ़ी है जिस पर...
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जन-गण-मन

'Jan Gan Man', a poem by Ramashankar Yadav Vidrohi मैं भी मरूँगा और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे लेकिन मैं चाहता हूँ कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें फिर...
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कविता और लाठी

'Kavita Aur Lathi', Hindi Kavita by Ramashankar Yadav Vidrohi तुम मुझसे हाले-दिल न पूछो ऐ दोस्त! तुम मुझसे सीधे-सीधे तबियत की बात कहो। और तबियत तो इस समय...
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औरतें

कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थी ऐसा पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज है और कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर...
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तुम्हारा भगवान

तुम्हारे मान लेने से पत्थर भगवान हो जाता है, लेकिन तुम्हारे मान लेने से पत्थर पैसा नहीं हो जाता। तुम्हारा भगवान पत्ते की गाय है, जिससे तुम खेल तो...
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