Tag: Ramshankar Yadav Vidrohi
ग़ुलामी की अन्तिम हदों तक लड़ेंगे
इस ज़माने में जिनका ज़माना है भाई
उन्हीं के ज़माने में रहते हैं हम
उन्हीं की हैं सहते, उन्हीं की हैं कहते
उन्हीं की ख़ातिर दिन-रात बहते...
कविता और लाठी
'Kavita Aur Lathi', Hindi Kavita by Ramashankar Yadav Vidrohi
तुम मुझसे
हाले-दिल न पूछो ऐ दोस्त!
तुम मुझसे सीधे-सीधे तबियत की बात कहो।
और तबियत तो इस समय...