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आँखों में मरते सपने
'Aankhon Mein Marte Sapne', a poem by Santwana Shrikant
उन लाखों युवतियों के नाम
लिख रही हूँ दो शब्द,
जिनकी देह पर तोड़ देती है
अंधी मर्दानगी अपना...
हम उस दौर में जी रहे हैं
हम उस दौर में जी रहे हैं जहाँ
फेमिनिज्म शब्द ने एक गाली का रूप ले लिया है
और धार्मिक उदघोष नारे बन चुके हैं
जहाँ हत्या,...