Tag: Raushniyaan
बे परों की तितली
ये झाड़न की मिट्टी से
मैं गिर रही हूँ
ये पंखे की घूं-घूं में
मैं घूमती हूँ
ये सालन की ख़ुशबू पे
मैं झूमती हूँ
मैं बेलन से चकले पे
बेली...
गुफ़्तगू नज़्म नहीं होती है
गुफ़्तगू के हाथ नहीं होते
मगर टटोलती रहती है दर ओ दीवार
फाड़ देती है छत
शक़ कर देती है सूरज का सीना
उंडेल देती है हिद्दत-अंगेज़ लावा
ख़ाकिसतर...
चार दीवारी में चुनी हुई औरत
बंद के उस तरफ़ ख़ुद उगी झाड़ियों में लगी रस भरी बेरियाँ ख़ूब तैयार हैं
पर मेरे वास्ते उनको दामन में भर लेना मुमकिन नहीं
ऐ...
नीम का पेड़
मेरे मिट्टी के घर के पीछे था
वो पेड़ बरसों से
नीम का पेड़
जिस पे खेलते-चढ़ते थे
अक्सर झूलते थे हम
उसी की छांव में गर्मी की अपनी...
मीर जी घर से जब भी निकलो
मीर जी घर से जब भी निकलो
क़श्क़ा खींचो
दैर में बैठो
या अब तर्क इस्लाम करो
नाम तो है पहचान तुम्हारी
किस किस को समझाओगे
अब तस्बीह के बिखरे...
इज़्ज़त बरक़रार रहती है!
उसने मुझसे कहा कि मैं तुमसे 'प्रेम' करता हूँ
ये भी कहा कि मैं अपनी पत्नी की 'इज़्ज़त' करता हूँ
जब उसके शरीर से बह रहा...
शायरा
मेरे होने की वारदात को
पेज थ्री की रंगीन
सुर्खियों की तरह पढ़ा जाता है
मेरी शख़्सियत का सुडोल होना ज़रूरी है
और जिस्म की तराश का भी
घनी...
तुम्हारे बस में ये कब है
तुम
हमारी लिखने वाली उँगलियों की
शमएँ गुल कर दो
हमारे लफ़्ज़
दीवारों में चुनवा दो
हमारे नाम के उपले बनाओ
अपनी दीवारों पे थोपो
अपने चूल्हों में जला दो
सब तुम्हारे...
मेरी हस्ती मेरा नील कमल
मेरे ख़्वाब जज़ीरे के अंदर
इक झील थी निथरे पानी की
इस झील किनारे पर सुन्दर
इक नील कमल जो खिलता था
इस नील कमल के पहलू में
इक...
ग्लोबल वॉर्मिंग
मेरे दिल की सतह पर टार जम गया है
साँस खींचती हूँ
तो खिंची चली आती है
कई टूटे तारों की राख
जाने कितने अरमान निगल गयी हूँ
साँस...
लड़की (क़ंदील बलोच के नाम)
पतले नंगे तार से लटकी
जलती, बुझती, बटती
वो लड़की
जो तुम्हारी धमकी से नहीं डरती
वो लड़की
जिसकी मांग टेढ़ी है
अंधी तन्क़ीद की कंघी
से नहीं सुलझती
वो लड़की
जिसकी हर...
क्या करूँ
क्या करूँ मैं
आसमां को अपनी मुट्ठी में पकड़ लूँ
या समुन्दर पर चलूँ
पेड़ के पत्ते गिनूँ
या टहनियों में जज़्ब होते
ओस के क़तरे चुनूँ
डूबते सूरज को
उंगली...