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एक दिन अचानक
एक शाम आप दफ़्तर से घर आते हैं—थके-माँदे। दरवाज़े पर लगा ताला आपको मुँह चिढ़ा रहा है। सुमी कहाँ गई होगी—ज़हन में ग़ुब्बारे-सा सवाल...
रिश्ते
जिन्हें धक्का मारना था,
उन्हें अपनी तरफ़
रहा खींचता
जो बने थे
खुल जाने के लिए
खींचने से,
उन्हें धकेलता रहा
अपने से दूर
लोग दरवाज़े थे
और मैं
साइन बोर्ड पढ़ने में अक्षम
अनपढ़,...
राकेश मिश्र की कविताएँ
सन्नाटा
हवावों का सनन् सनन्
ऊँग ऊँग शोर
दरअसल एक डरावने सन्नाटे का
शोर होता है,
ढेरों कुसिर्यों के बीच बैठा
अकेला आदमी
झुण्ड से बिछड़ा
अकेला पशु
आसानी से महसूस कर सकता...
हरिहर काका
हरिहर काका के यहाँ से मैं अभी-अभी लौटा हूँ। कल भी उनके यहाँ गया था, लेकिन न तो वह कल ही कुछ कह सके...
परमानन्द रमन की कविताएँ
आपदा प्रबन्धन
कहीं किसी कोने में
जीवन यात्रा के भी
हो एक आपातकालीन खिड़की
आपदाओं के शिकार
कुछ टूटे/हारे रिश्ते
पहुँच नहीं पाते
अपने अन्तिम पड़ाव तक।
आवेदन
नहीं था कोई कॉलम
किसी भी...