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कविताएँ: दिसम्बर 2021
आपत्तियाँ
ट्रेन के जनरल डिब्बे में चार के लिए तय जगह पर
छह बैठ जाते थे
तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती थी
स्लीपर में रात के समय...
यह कहानी नहीं
अमृता प्रीतम की आत्मकथा 'अक्षरों के साये' से
पत्थर और चूना बहुत था, लेकिन अगर थोड़ी-सी जगह पर दीवार की तरह उभरकर खड़ा हो जाता,...
अंतर्व्यथा (नीचे के कपड़े)
'Antarvyatha' (Neeche Ke Kapde), a story by Amrita Pritam
जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी- 'नीचे के कपड़े', उसका नाम भूल...
इश्क़ में ‘आम’ होना
"तुम ऐसे खाते हो? मैं तो काट के खाती हूँ। ऐसे गँवार लगते हैं और मुँह भी गन्दा हो जाता है और पब्लिक में...
मन की बात
"सुनो।"
"हाँ।"
"अगर मेरे लिए कोई मन्दिर बनाकर उसमें मेरी मूर्ति रखे, तो मुझे तो बहुत अच्छा लगे।"
"पर ऐसे पूजने वाले ज्यादा हो जायेंगे और प्यार...
तुम मुबारक
"लगे इलज़ाम लाखो हैं कि घर से दूर निकला हूँ
तुम्हारी ईद तुम समझो, मैं तो बदस्तूर निकला हूँ।"
"तुम नहीं सुधरोगे ना? कोई घर ना...