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आजकल, वे लौट रहे हैं मानो लौट रही हों हताश चींटियाँ
आजकल
1
रेंग रहा है यह वक़्त
मेरे जिस्म पर कीड़े की तरह
अपनी हथेलियों से लगातार
मैं इसे झटकने की कोशिश कर रहा हूँ...
2
वृक्ष की शाख़ से टूटकर...
लौटना, थपकियाँ, देखना
लौटना
खण्डित आस्थाएँ लिए
महामारी के इस दुर्दिन में
हज़ारों बेबस, लाचार मज़दूर
सभी दिशाओं से
लौट रहे हैं
अपने-अपने घर
उसने नहीं सोचा था
लौटना होगा कुछ यूँ
कि वह लौटने जैसा नहीं...
घटना नहीं है घर लौटना
रोहित ठाकुर : तीन कविताएँ
घर लौटते हुए किसी अनहोनी का शिकार न हो जाऊँ
दिल्ली - बम्बई - पूना - कलकत्ता
न जाने कहाँ-कहाँ से
पैदल चलते...
स्त्रियाँ घर लौटती हैं
स्त्रियाँ घर लौटती हैं
पश्चिम के आकाश में
आकुल वेग से उड़ती हुई
काली चिड़ियों की पाँत की तरह।
स्त्रियों का घर लौटना
पुरुषों का घर लौटना नहीं है,
पुरुष...
स्त्रियाँ घर लौटती हैं
चयन: अनुराग तिवारी
स्त्रियाँ घर लौटती हैं
पिता
डोरी पर घर
पिता की याद
पेंसिल की तरह बरती गयीं घरेलू स्त्रियाँ
उस दिन भी, ऊन, भोर उगाता हूँ, माँ को ख़त
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लेकिन मुझे तो लौटना था
बीता वर्ष अवसान हेतु उद्यत है
वर्ष नहीं जानते हैं
पूरी तरह वापस लौटने की कला
लेकिन मुझे तो लौट जाना था...
हृदय के उस अति संकरे मार्ग पर
जहाँ...
लौटते क़दम
'Lautate Qadam', a poem by Gaurav Bharti
दहशत भरे इस माहौल में
घर की तरफ़ लौटते ये क़दम
एक दिन फिर लौटेंगे
राजधानी की तरफ़
वे रंगों के नापाक...
लौटना
'Lautna', a poem by Vishnu Khare
हम क्यों लौटना चाहते हैं
स्मृतियों, जगहों और ऋतुओं में
जानते हुए कि लौटना एक ग़लत शब्द है।
जब हम लौटते हैं...
इस बार फिर लौट जाओ प्रिये
'Is Baar Phir Laut Jao Priya', a poem by Rupam Mishra
इस बार फिर लौट जाओ प्रिये...
देह के विहान होने पर
ब्रह्ममुहूर्त में ही
तुम्हें ढूँढने निकली...
वक़्त का अजायबघर
तुम जब चाहो घर लौट आना
आने में ज़रा भी न झिझकना
यहाँ की पेचीदा गलियाँ
अभी भी पुरसुकून हैं
घुमावदार हैं मगर
बेहद आसान हैं
इनमें से होकर तुम
मज़े...
लौटना होगा
'Lautna Hoga', a poem by Nirmal Gupt
एक दिन
हमें लौटना होगा
जैसे आकाश छूती लहरों के बीच से
लौट आते हैं मछुआरे अपनी जर्जर नाव
और पकड़ी हुई...
मैं फिर फिर लौटूँगा
'Main Phir Phir Lautoonga', a poem by Rahul Boyal
मैं फिर फिर लौटूँगा
मगर तिजोरी जैसे घर
और कोठरी जैसे दफ़्तर को
भूलना चाहूँगा
मैं कहीं और लौटूँगा
मैं उदास...