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Gaurav Bharti

आजकल, वे लौट रहे हैं मानो लौट रही हों हताश चींटियाँ

आजकल 1 रेंग रहा है यह वक़्त मेरे जिस्म पर कीड़े की तरह अपनी हथेलियों से लगातार मैं इसे झटकने की कोशिश कर रहा हूँ... 2 वृक्ष की शाख़ से टूटकर...
Gaurav Bharti

लौटना, थपकियाँ, देखना

लौटना खण्डित आस्थाएँ लिए महामारी के इस दुर्दिन में हज़ारों बेबस, लाचार मज़दूर सभी दिशाओं से लौट रहे हैं अपने-अपने घर उसने नहीं सोचा था लौटना होगा कुछ यूँ कि वह लौटने जैसा नहीं...
Rohit Thakur

घटना नहीं है घर लौटना

रोहित ठाकुर : तीन कविताएँ घर लौटते हुए किसी अनहोनी का शिकार न हो जाऊँ दिल्ली - बम्बई - पूना - कलकत्ता न जाने कहाँ-कहाँ से पैदल चलते...
Striyaan Ghar Lautti Hain - Vivek Chaturvedi

स्त्रियाँ घर लौटती हैं

स्त्रियाँ घर लौटती हैं पश्चिम के आकाश में आकुल वेग से उड़ती हुई काली चिड़ियों की पाँत की तरह। स्त्रियों का घर लौटना पुरुषों का घर लौटना नहीं है, पुरुष...
Striyaan Ghar Lautti Hain - Vivek Chaturvedi

स्त्रियाँ घर लौटती हैं

चयन: अनुराग तिवारी स्त्रियाँ घर लौटती हैं पिता डोरी पर घर पिता की याद पेंसिल की तरह बरती गयीं घरेलू स्त्रियाँ उस दिन भी, ऊन, भोर उगाता हूँ, माँ को ख़त Link...
Manjula Bist

लेकिन मुझे तो लौटना था

बीता वर्ष अवसान हेतु उद्यत है वर्ष नहीं जानते हैं पूरी तरह वापस लौटने की कला लेकिन मुझे तो लौट जाना था... हृदय के उस अति संकरे मार्ग पर जहाँ...
Gaurav Bharti

लौटते क़दम

'Lautate Qadam', a poem by Gaurav Bharti दहशत भरे इस माहौल में घर की तरफ़ लौटते ये क़दम एक दिन फिर लौटेंगे राजधानी की तरफ़ वे रंगों के नापाक...
Vishnu Khare

लौटना

'Lautna', a poem by Vishnu Khare हम क्यों लौटना चाहते हैं स्मृतियों, जगहों और ऋतुओं में जानते हुए कि लौटना एक ग़लत शब्द है। जब हम लौटते हैं...

इस बार फिर लौट जाओ प्रिये

'Is Baar Phir Laut Jao Priya', a poem by Rupam Mishra इस बार फिर लौट जाओ प्रिये... देह के विहान होने पर ब्रह्ममुहूर्त में ही तुम्हें ढूँढने निकली...
Waiting

वक़्त का अजायबघर

तुम जब चाहो घर लौट आना आने में ज़रा भी न झिझकना यहाँ की पेचीदा गलियाँ अभी भी पुरसुकून हैं घुमावदार हैं मगर बेहद आसान हैं इनमें से होकर तुम मज़े...
Return, Shadow, Silhouette, March

लौटना होगा

'Lautna Hoga', a poem by Nirmal Gupt एक दिन हमें लौटना होगा जैसे आकाश छूती लहरों के बीच से लौट आते हैं मछुआरे अपनी जर्जर नाव और पकड़ी हुई...
Rahul Boyal

मैं फिर फिर लौटूँगा

'Main Phir Phir Lautoonga', a poem by Rahul Boyal मैं फिर फिर लौटूँगा मगर तिजोरी जैसे घर और कोठरी जैसे दफ़्तर को भूलना चाहूँगा मैं कहीं और लौटूँगा मैं उदास...
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