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लौटना
जीवन के अन्तिम दशक में
कोई क्यों नहीं लौटना चाहेगा
परिचित लोगों की परिचित धरती पर
निराशा और थकान ने कहा—
जो कुछ इस समय सहजता से उपलब्ध है
उसे...
काली-काली घटा देखकर
काली-काली घटा देखकर
जी ललचाता है,
लौट चलो घर पंछी
जोड़ा ताल बुलाता है।
सोंधी-सोंधी
गंध खेत की
हवा बाँटती है,
सीधी-सादी राह
बीच से
नदी काटती है,
गहराता है रंग और
मौसम लहराता है।
लौट...
घटना नहीं है घर लौटना
रोहित ठाकुर : तीन कविताएँ
घर लौटते हुए किसी अनहोनी का शिकार न हो जाऊँ
दिल्ली - बम्बई - पूना - कलकत्ता
न जाने कहाँ-कहाँ से
पैदल चलते...
वक़्त का अजायबघर
तुम जब चाहो घर लौट आना
आने में ज़रा भी न झिझकना
यहाँ की पेचीदा गलियाँ
अभी भी पुरसुकून हैं
घुमावदार हैं मगर
बेहद आसान हैं
इनमें से होकर तुम
मज़े...