Tag: Rohit Thakur
बहन
1
जीवन में स्वयं के पराजय का दुःख
उतना कभी नहीं रहा
जितना कभी बहन के उदास चेहरे को देखने-भर से हुआ
मैं उन सभी आन्दोलनों में शामिल...
सोलेस इन मे
कौन आएगा मई में सांत्वना देने
कोई नहीं आएगा
समय ने मृत्यु का स्वांग रचा है
अगर कोई न आए तो
बारिश तुम आना
आँसुओं की तरह
दो-चार बूँदों की...
भाषा के पहाड़ के उस पार
कितने लोग ख़ाली हाथ घर लौटते हैं
इस धरती पर
कितना तूफ़ान मचा रहता है उनके अंदर
किसी देश का मौसम विभाग
इस तूफ़ान की सूचना नहीं देता है
एक थके...
एक मौसम को लिखते समय
मैं सही शब्दों की तलाश करूँगा
लिखूँगा एक मौसम,
एक सत्य कहने में
दुःख का वृक्ष भी सूख जाता है
घर जाने वाली सभी रेल
विलम्ब से चल रही...
मेरे पढ़ने की प्राथमिकता में दोष है
मैंने उन लेखकों को पढ़ना चाहा
जो उन देशों में रहते थे जिनकी दिशा का ज्ञान मुझे नहीं है
उन तमाम लेखकों के बारे में
मैं कितना...
मैं अपने मरने के सौन्दर्य को चूक गया
एक औरत मुजफ़्फ़रपुर जंक्शन के प्लेटफ़ार्म पर
मरी लेटी है
उसका बच्चा उसके पास खेल रहा है
बच्चे की उम्र महज़ एक साल है
एक औरत की गोद में...
हम सब लौट रहे हैं
हम सब लौट रहे हैं
ख़ाली हाथ
भय और दुःख के साथ लौट रहे हैं
हमारे दिलो-दिमाग़ में
गहरे भाव हैं पराजय के
इत्मीनान से आते समय
अपने कमरे को भी...
कविताएँ — मई 2020 (दूसरा भाग)
मैना
निष्ठुर दिनों में देखा है
कोई नहीं आता।
मैना की ही बात करता हूँ
कई मौसमों के बीत जाने पर आयी है
मैं तो बच गया—
विस्मृत हो रही...
कविताएँ – मई 2020
गौरैया
गौरैया को देखकर
कौन चिड़िया मात्र को याद करता है?
गौरैया की चंचलता देखकर
बेटी की चंचल आँखें याद आती हैं,
पत्नी को देखता हूँ रसोई में हलकान
गौरैया...
नदी
नदी : नौ कविताएँ
1
नदी को देखना
नदी को जानना नहीं है
नदी को छूना
नदी को पाना नहीं है
नदी के साथ सम्वाद
नदी की तरह भीगना नहीं है
नदी...
घटना नहीं है घर लौटना
रोहित ठाकुर : तीन कविताएँ
घर लौटते हुए किसी अनहोनी का शिकार न हो जाऊँ
दिल्ली - बम्बई - पूना - कलकत्ता
न जाने कहाँ-कहाँ से
पैदल चलते...
घर
'Ghar', a poem by Rohit Thakur
कहीं भी घर जोड़ लेंगे हम
बस ऊष्णता बची रहे
घर के कोने में
बची रहे धूप
चावल और आटा बचा रहे
ज़रूरत-भर के...