Tag: Rupam Mishra
वे सब मेरी ही जाति से थीं
मुझे तुम न समझाओ अपनी जाति को चीन्हना श्रीमान
बात हमारी है, हमें भी कहने दो
तुम ये जो कूद-कूदकर अपनी सहूलियत से मर्दवाद का बहकाऊ...
मैं अंततः वहीं मुड़ जाऊँगी
अभी किसी नाम से न पुकारना तुम मुझे
पलटकर देखूँगी नहीं,
हर नाम की एक पहचान है
पहचान का एक इतिहास
और हर इतिहास कहीं न कहीं रक्त...
बड़ी बात नहीं होती
बड़ी बात नहीं होती दाल या सब्ज़ी में नमक भूल जाना
चाय में दो बार चीनी डालना, अदरक कूटकर भी डालना भूल जाना
बड़ी बात नहीं होती...
मैं तो भूल चली बाबुल का देश
ताल जैसा कच्चा आँगन और अट्ठारह की कच्ची उम्र
देवर की शादी में बड़की भाभी झूम-झूमकर नाच रही हैं!
तभी पता चला कि बड़के हंडे की...
तहज़ीबें चकित तुम्हें देखकर
मैं हैरान और निहाल हूँ तुम्हें देखकर,
जीवन में मैंने तुमसे बड़ा अचरज नहीं देखा!
तुम नदी से बातें कर सकते हो
चिड़िया के साथ गा सकते...
तुम लोग मान क्यों नहीं जाते
वो रात तब एकदम काली हो जाती है जब स्क्रीन पर
एक मैसेज फ़्लो होता है—
'प्लीज़ अब मैसेज मत करना!'
बेबसी में डूबा वो एक आखर
सारे...
विद्योत्तमा शुक्ला, मैं तुम्हें जानती हूँ
विद्योत्तमा शुक्ला, मैं तुम्हें जानती हूँ!
तुम हमारे जौनपुर की ही थीं!
तुम्हारा बेटा मेरे बेटे से कुछ लहुरा या जेठ था
तुम मुझे चौकीया के मेले...
और कितनी सुविधा लेगें
हर त्रासदी में ये पेट खोलकर बैठ जाते हैं
बहुत बड़ा होता है इनका पेट
इतना बड़ा कि ख़रबों के ख़र्च से बना स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी भी...
मैं यहाँ भी नहीं ठहरूँगी
मैं यहाँ भी नहीं ठहरूँगी!
मैंने जन्म से देह की घृणा पी थी
सबसे आदिम सम्बन्ध बहुत घिनौना है- ये मिथ मुझे माँ के दूध में...
पिता के घर में मैं
पिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ?
मुझे तो तुम याद रहते हो
क्योंकि ये हमेशा मुझे याद कराया गया।
फ़ासीवाद मुझे कभी किताब से नहीं समझना पड़ा।
पिता...
फँसी हुई लड़कियाँ
यह कविता यहाँ सुनें:
https://youtu.be/0T16i3IPpwI
फँसी हुई लड़कियाँ!
उसके गाँव जवार और मुहल्ले का
ये आसाध्य और बहुछूत शब्द था,
कुछ लड़कियों के तथाकथित प्रेमियों ने अपने जैसे धूर्त...
हम माँ के बनाए मिट्टी के खिलौने थे
हम गाँव के बड़के घर की बेटियाँ थीं, ये हमने गाँव में ही सुना!
हम बाँस की तरह रोज़ बढ़ जाते, और ककड़ियों की तरह...