Tag: Rupam Mishra

Women sitting

वे सब मेरी ही जाति से थीं

मुझे तुम न समझाओ अपनी जाति को चीन्हना श्रीमान बात हमारी है, हमें भी कहने दो तुम ये जो कूद-कूदकर अपनी सहूलियत से मर्दवाद का बहकाऊ...
Abstract painting, Woman

मैं अंततः वहीं मुड़ जाऊँगी

अभी किसी नाम से न पुकारना तुम मुझे पलटकर देखूँगी नहीं, हर नाम की एक पहचान है पहचान का एक इतिहास और हर इतिहास कहीं न कहीं रक्त...
Girl, Woman

बड़ी बात नहीं होती

बड़ी बात नहीं होती दाल या सब्ज़ी में नमक भूल जाना चाय में दो बार चीनी डालना, अदरक कूटकर भी डालना भूल जाना बड़ी बात नहीं होती...
Woman in Sari, Pallu

मैं तो भूल चली बाबुल का देश

ताल जैसा कच्चा आँगन और अट्ठारह की कच्ची उम्र देवर की शादी में बड़की भाभी झूम-झूमकर नाच रही हैं! तभी पता चला कि बड़के हंडे की...
Man, Peace

तहज़ीबें चकित तुम्हें देखकर

मैं हैरान और निहाल हूँ तुम्हें देखकर, जीवन में मैंने तुमसे बड़ा अचरज नहीं देखा! तुम नदी से बातें कर सकते हो चिड़िया के साथ गा सकते...
Woman, Face, Dark, Paint

तुम लोग मान क्यों नहीं जाते

वो रात तब एकदम काली हो जाती है जब स्क्रीन पर एक मैसेज फ़्लो होता है— 'प्लीज़ अब मैसेज मत करना!' बेबसी में डूबा वो एक आखर सारे...

विद्योत्तमा शुक्ला, मैं तुम्हें जानती हूँ

विद्योत्तमा शुक्ला, मैं तुम्हें जानती हूँ! तुम हमारे जौनपुर की ही थीं! तुम्हारा बेटा मेरे बेटे से कुछ लहुरा या जेठ था तुम मुझे चौकीया के मेले...
Helping the Poor, Begging

और कितनी सुविधा लेगें

हर त्रासदी में ये पेट खोलकर बैठ जाते हैं बहुत बड़ा होता है इनका पेट इतना बड़ा कि ख़रबों के ख़र्च से बना स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी भी...
Woman Tree

मैं यहाँ भी नहीं ठहरूँगी

मैं यहाँ भी नहीं ठहरूँगी! मैंने जन्म से देह की घृणा पी थी सबसे आदिम सम्बन्ध बहुत घिनौना है- ये मिथ मुझे माँ के दूध में...
Girl, Woman

पिता के घर में मैं

पिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ? मुझे तो तुम याद रहते हो क्योंकि ये हमेशा मुझे याद कराया गया। फ़ासीवाद मुझे कभी किताब से नहीं समझना पड़ा। पिता...
Girl, Woman

फँसी हुई लड़कियाँ

यह कविता यहाँ सुनें: https://youtu.be/0T16i3IPpwI फँसी हुई लड़कियाँ! उसके गाँव जवार और मुहल्ले का ये आसाध्य और बहुछूत शब्द था, कुछ लड़कियों के तथाकथित प्रेमियों ने अपने जैसे धूर्त...
Women from village

हम माँ के बनाए मिट्टी के खिलौने थे

हम गाँव के बड़के घर की बेटियाँ थीं, ये हमने गाँव में ही सुना! हम बाँस की तरह रोज़ बढ़ जाते, और ककड़ियों की तरह...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)