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Sanwar Daiya

‘उस दुनिया की सैर के बाद’ से कविताएँ

'उस दुनिया की सैर के बाद' से अपने ही रचे को पहली बरसात के साथ ही घरों से निकल पड़ते हैं बच्चे रचने रेत के घर घर बनाकर घर-घर खेलते...
Birds

चहकती-फुदकती चिड़ियाँ

आज सुबह पेड़ की डाल पर फिर चहकीं चिड़ियाँ सुना मैंने पेड़ की नंगी डालों पर फुदक रही थीं चिड़ियाँ देखा मैंने ख़ाली कनस्तर ठण्डा चूल्हा प्रश्नचिह्न बनीं आँखें मन को छीलने वाली चुप्पी में गूँजती अनिवार्य...
Sanwar Daiya

बदलती संज्ञा को देखते

रोज़ ही जल-जला जाती हैं लड़कियाँ, बाहर की दुनिया रहती है जस-की-तस, क्रिया नहीं संज्ञा भर बदलती है बस जलजला आता नहीं कहीं कोई जल-जला आती है चुपचाप जल-जला आना है जिसे एक-न-एक...
Sanwar Daiya

ख़बर करना मुझे

'Khabar Karna Mujhe', a poem by Sanwar Daiya माँ रसोई में व्यस्त है अपनी सम्पूर्ण झुँझलाहट और खीझ के साथ सब्ज़ी भून रही है और भुनभुना रही है जिस...
Sanwar Daiya

कालान्तरण

"तुम्हारे चिकने शरीर पर हाथ फेरते समय शरीर की नसें झनझनाने की जगह रसोई में रखे खाली डिब्बे बजने लगते हैं जब भी गीत गुनगुनाने के लिए हिलाता हूँ होंठ मुँह से प्रसारित होने लगते हैं बाजार भाव..."
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