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‘खोई चीज़ों का शोक’ से कविताएँ
सविता सिंह का नया कविता संग्रह 'खोई चीज़ों का शोक' सघन भावनात्मक आवेश से युक्त कविताओं की एक शृंखला है जो अत्यन्त निजी होते...
सच्ची कविता के लिए
वह जो अपने ही माँस की टोकरी
सिर पर उठाए जा रही है
और वह जो पिटने के बाद ही
खुल पाती है अन्धकार की तरफ़
एक दरवाज़े-सी
जैसे...
बैठी हैं औरतें विलाप में
बैठी हैं एक साथ
गठरी बन
बिसूरतीं
रोतीं, विलाप करतीं स्त्रियाँ
करतीं शापित पूरे इतिहास को
जिसमें उनके लिए
अंधकार का मरुस्थल बिछा है
बैठी हैं याद करतीं
अपनी महान परम्परा को
जिसमें थी...
सुन्दर बातें
जब हम मिले थे
वह समय भी अजीब था
शहर में दंगा था
कोई कहीं आ-जा नहीं सकता था
एक-दूसरे को वर्षों से जानने वाले लोग
एक-दूसरे को अब...
मैं किसकी औरत हूँ
मैं किसकी औरत हूँ
कौन है मेरा परमेश्वर
किसके पाँव दबाती हूँ
किसका दिया खाती हूँ
किसकी मार सहती हूँ
ऐसे ही थे सवाल उसके
बैठी थी जो मेरे सामने वाली...