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छाया मत छूना
छाया मत छूना मन
होता है दुःख दूना मन
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गन्ध फैली मनभावनी;
तन-सुगन्ध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुन्तल के फूलों की याद बनी...
उजली परछाईं
सच के उजाले में
झूठ की परछाईं
लम्बी हो जाती है
दीवारों पर बनती आकृति
दरारों मे मुँह छुपाती है
छत पर लटक जाती है
फ़र्श पर पैरों से लिपट...
साए की ख़ामोशी
साए की ख़ामोशी सिर्फ़ ज़मीन सहती है
खोखला पेड़ नहीं या खोखली हँसी नहीं
और फिर अंजान अपनी अनजानी हँसी में हँसा
क़हक़हे का पत्थर संग-रेज़ों में...