Tag: Shalini Singh
रूप कथाओं के चमकते नायक
प्रेम जताने से अधिक
प्रेम निभाना ज़रूरी होता है
इतनी साधारण बात है
पर वे
कभी तुम्हारी मूँछों पर तो कभी चाल पर
तो कभी तुम्हारे रुआब पर मर...
वो लड़की
लड़की जानती है उसके हाथों में
सुख की रेखाएँ हल्की हैं
वह समय के बर्तन में
भय को घोंटते हुए साहस निथार रही है
उसे जीवन के कान...
सुबह
कितना सुन्दर है
सुबह का
काँच के शीशों से झाँकना
इसी ललछौंहे अनछुए स्पर्श से
जागती रही हूँ मैं
बचपन का अभ्यास इतना
सध गया है
कि आँखें खुल ही जाती...
भरोसा
उन्होंने ही किया सर्वाधिक दोहन भरोसे का
जिनकी शिराओं में सभ्यताओं की रसोई का नमक घुला था
पुरखों की कही ये सूक्ति स्मरण करती हूँ बार-बार
पर...
अभीष्ट
अकारण तो नहीं
साउद्देश्य ही था
व्यवस्था के पन्नों पर
कुछ लिखित, कुछ अलिखित
प्रथम-दृष्टया तो अबूझ रहा
चेतना के उत्तरोत्तर क्रम
के बाद जाना कि
उछाले गए सिक्के के चित...
प्रेम की डाक
ईश्वर के हरकारे
चल पड़े हैं
प्रेम की डाक लेकर
वसंत ऋतु में
उनके पास सभ्यता के
प्रथम प्रेम की स्मृतियों की
अनन्त कहानियाँ हैं
रोशनी के आलोक में जब
शहर स्थिर...
मेरे पुरखे किसान थे
मेरे पुरखे किसान थे
मैं किसान नहीं हूँ
मेरी देह से
खेत की मिट्टी
की कोई आदिम गन्ध नहीं आती
पर मेरे मन के किसी पवित्र
स्थान पर
सभी पुरखे जड़...
मिल्कियत
सुदूर गाँव में बसी ब्याहताएँ
उलाहनों के बीच
थामें रहती हैं चुप की चादर
सहमी-सी सुनती रहती हैं बोल-कुबोल
माँ के संस्कारों को सींचने के उपक्रम में
दिन की उठा-पठक...
हठी लड़कियाँ
वो कौन था
आया था अकेले
या पूरे टोले के साथ
नोच लिए थे जिनके हाथों ने
स्वप्नों में उग रहे फूल
रात हो गई तब और गाढ़ी अपने...
स्त्रियों के हिस्से का सुख
जब कि बरसों बाद
स्त्रियों के हिस्से आया है
पुरुषों के संग रहने का सुख
तो फिर आँकड़े क्यूँ कह रहे हैं
कि स्त्रियाँ सबसे अधिक उदास इन दिनों...
मन का घर, तुमसे विलग होकर
मन का घर
उसके मन के घर में
गूँजती रहती हैं
टूटती इच्छाओं की
मौन आवाज़ें
उसमें हर बालिश्त
दर्ज होती जाती है
छूटते जा रहे सपनों से
पलायन की एक लम्बी...