Tag: Shweta Madhu
निरीह रस्ते
कभी चलो किसी रस्ते पर
तो बटोरते चलना खुद को
क्यूंकि जिन रस्तों पर
छोड़ आते हैं हम
अपना एक भी कतरा...
मुक्ति मार्ग पर चलने से पहले
उन रास्तों...
तुम बादल बन जाओ
तुम अगर बादल बन जाओ
तुम्हें तकिया बना कर
मैं सो जाऊं कुछ देर..
ठंड लगे तो छुप जाऊं तुम में
ओढ़ लूं तुम्हें अपने चारों ओर..
जो डर...
जब वो कविताएँ लिखता है
दो चेहरे उगे होते हैं उसके
जब वो कविताएँ लिखता है,
दिखते हैं दोनों ही मुझे
एक दूसरे में अझुराए हुए,
एक उगा होता है
स्याही लगे हाँथों की उंगलियों में,
दूसरा...
खोइंछा
दुआओं का जो खोइंछा तुमने
मेरे आँचल के छोर में डाला था
मैंने उन्हें एहसासों से बांध लिया है...
एक-एक दाने को बड़े सलीके से
रस्ते के लिए सहेज रखा है
चावल,...
रंगबिरंगी परछाइयाँ
जैसे रात और दिन के बीच चाँद
चिपका रहता है आसमान से,
वैसे ही आजकल
बड़ी, गोल बिंदी भाती है मुझे
मेरे दोनों भवों के बीचोंबीच...
उस चाँद के हिस्से...