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बिचौलियों के बीज
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
माँ!
मेरा बचपन तो
तुम्हारी पीठ पर बँधे बीता—
जब तुम घास का भारी बोझ
सिर पर रखकर
शहर को जाती थीं।
जब भी आँखें खोलता
घास की...
यह कदम्ब का पेड़
यह कदम्ब का पेड़ | Yah Kadamb Ka Ped
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥
ले...
इच्छा-पूर्ण
अनुवाद: रत्ना रॉय
सुबलचन्द्र के बेटे का नाम सुशीलचन्द्र था। लेकिन हमेशा नाम के अनुरूप व्यक्ति भी हो ऐसा क़तई ज़रूरी नहींं। तभी तो सुबलचन्द्र...