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साए की ख़ामोशी
साए की ख़ामोशी सिर्फ़ ज़मीन सहती है
खोखला पेड़ नहीं या खोखली हँसी नहीं
और फिर अंजान अपनी अनजानी हँसी में हँसा
क़हक़हे का पत्थर संग-रेज़ों में...
खजुराहो की दो मूर्तियाँ
खजुराहो के एक श्रमिक ने सोचा कि इन 'अश्लील' मूर्तियों के साथ कुछ जर्जर और अस्थि-पंजर नर-नारियों की मूर्तियाँ भी इनके पास रखी जाएँ जिससे लोगों को याद रहे कि यह सुडौल अवस्था भी एक दिन बूढ़ी हो जाएगी और उसने ऐसा किया भी.. लेकिन उसके बाद? पढ़िए इस कहानी में!