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तआवुन
विभाजन ऐसा दौर रहा है जिसमें हर तरह की लूट-खसूट हुई, इंसान ने ख़ुद को इंसान न कहलाए जाने के सारे कारण पैदा किए.. लेकिन साथ ही इस दौर में इंसानियत का वह चेहरा भी देखने को मिला जिसका अंदाज़ा शायद उन इंसानों को भी नहीं था जो उसका माध्यम बने! पढ़िए कहानी एक ऐसे आदमी की, जो एक घर की लूट के दौरान लोगों से यह अपील कर रहा है कि वे सब तआवुन से, सहयोग से काम लें.. और बिना तोड़-फोड़ इस घर को लूटें.. कौन था वह आदमी?
साम्यवाद
लूट या साम्यवाद?
तक़सीम
"काका तू जहाँ मरजी है रह। तू मुसलमान हो गया है तो कोई बात नहीं, पर मान तो ले तू ही मेरा बेटा है, पिन्नी।"
तक़सीम यानी विभाजन में अनगिनत लोग अपने परिवारों से बिछड़ गए और वे परिवार उन लोगों का केवल इंतज़ार करते रहे.. अधिकतर लोगों के लिए यह इंतज़ार कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार भी था और इतना भयावह कि इससे छुटकारा पाने के लिए इंसान एक झूठी तसल्ली का आसरा तक खोजने लगा था..
गुलज़ार को जब किसी ने बताया कि वो उनके बिछुड़े हुए बेटे हैं और गुलज़ार जब उनके घर गए तो क्या हुआ.. पढ़िए इस कहानी में!