Tag: Sudha Arora
अकेली औरत का हँसना
अकेली औरत
ख़ुद से ख़ुद को छिपाती है।
होंठों के बीच क़ैद पड़ी हँसी को खींचकर
जबरन हँसती है
और हँसी बीच रास्ते ही टूट जाती है...
अकेली औरत...
शतरंज के मोहरे
सबसे सफल
वह अकेली औरत है
जो अकेली कभी हुई ही नहीं
फिर भी अकेली कहलाती है
अकेले होने के छत्र तले
पनप रही है
नयी सदी में यह नयी जमात—
जो...
अकेली औरत का रोना
ऐसी भी सुबह होती है एक दिन
जब अकेली औरत
फूट-फूटकर रोना चाहती है,
रोना एक ग़ुबार की तरह
गले में अटक जाता है
और वह सुबह-सुबह
किशोरी अमोनकर का...
भरवाँ भिंडी और करेले
अकेली औरत
पीछे लौटती है
बीसियों साल पहले के मौसम में
जब वह अकेली नहीं थी
सुबह से फिरकनी की तरह
घर में घूमने लगती थी
इसके लिए जूस
उसके लिए शहद...
धूप तो कब की जा चुकी है
औरत पहचान ही नहीं पाती
अपना अकेला होना
घर का फ़र्श बुहारती है
खिड़की दरवाज़े
झाड़न से चमकाती है
और उन दीवारों पर
लाड़ उँड़ेलती है
जिसे पकड़कर बेटे ने
पहला क़दम रखना...
एक औरत तीन बटा चार
स्त्रियाँ घर से बाहर कहीं भी जाएँ, बच्चे और पति के स्कूल और ऑफिस से आने से पहले ही घर पर आ जाती हैं.. और यह समाज यही अपेक्षा उनसे करता भी आया है, यह बिना सोचे समझे कि उनकी एक अलग ज़िन्दगी है, उनके कुछ चाव हो सकते हैं, सहेलियां हो सकती हैं.. पुरुष अपने घर के काम अपने आउटिंग प्लान्स के चलते टाल देता है, लेकिन स्त्री अगर यही करे तो कह दिया जाता है कि उसका घर की तरफ ध्यान नहीं है!
सुधा अरोड़ा इस कहानी में यही हमें बताने की कोशिश कर रही हैं कि कैसे हमने स्त्रियों का एक हिस्सा घर में क़ैद कर रखा है और कैसे ज़िन्दगी के अलग-अलग रूपों की धूप और पानी के बिना वह हिस्सा निर्जीव होने लगता है.. ज़रूर पढ़िए!