Tag: Sunita Jain

Sunita Jain

खोल दो खिड़की कोई

खोल दो खिड़की कोई गहरी, बहुत गहरी घुटन है दिन नहीं बीते खिले थे बौर पेड़ों पर जले थे लाल पीले रंग रंगों के दिन नहीं बीते गुदे थे गोदने गोरे...
Sunita Jain

तरुणी

मिथिला से छपरा तक, बनारस से बलिया तक, टालीगंज से बालीगंज तक, देवरिया से विदिशा तक, बैठी है तरुणी— हर साल जने बच्चों को सालों-साल सम्भालती। सारा गाँव मर्दों से ख़ाली। छोटा...
Sunita Jain

सौ टंच माल

बाज़ारों की भीड़ में चलते-चलते किसी का बेहूदा हाथ धप्पा देता है उसकी जाँघों पे, कोई काट लेता है चिकोटी वक्ष पे कोई टकराकर गिरा देता है सौदे का थैला फिर...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)