Tag: Sunita Jain
खोल दो खिड़की कोई
खोल दो खिड़की कोई
गहरी, बहुत गहरी घुटन है
दिन नहीं बीते
खिले थे बौर
पेड़ों पर जले थे
लाल पीले रंग रंगों के
दिन नहीं बीते गुदे थे
गोदने गोरे...
तरुणी
मिथिला से छपरा तक,
बनारस से बलिया तक,
टालीगंज से बालीगंज तक,
देवरिया से विदिशा तक,
बैठी है तरुणी—
हर साल जने बच्चों को
सालों-साल सम्भालती।
सारा गाँव मर्दों से ख़ाली।
छोटा...
सौ टंच माल
बाज़ारों की भीड़ में
चलते-चलते किसी का बेहूदा हाथ
धप्पा देता है उसकी जाँघों पे,
कोई काट लेता है चिकोटी
वक्ष पे
कोई टकराकर गिरा देता है
सौदे का थैला
फिर...