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घर पूछता है

जाने डगर में जाकर अनजाने राह में भटककर थोड़ा रुककर सुस्ताकर क्या बेझिझक याद नहीं करते हो अपना घर?
Rohit Thakur

घर

'Ghar', a poem by Rohit Thakur कहीं भी घर जोड़ लेंगे हम बस ऊष्णता बची रहे घर के कोने में बची रहे धूप चावल और आटा बचा रहे ज़रूरत-भर के...
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