Tag: The Mirror by Haruki Murakami

Haruki Murakami

आईना

"आईने में दिख रहा मेरा प्रतिबिंब दरअसल मैं नहीं था। बाहर से वह बिलकुल मेरी तरह लग रहा था, लेकिन यकीनन वह मैं नहीं था। नहीं, यह बात नहीं थी। वह 'मैं' तो था लेकिन कोई 'दूसरा' ही मैं था। कोई दूसरा मैं, जिसे नहीं होना चाहिए था। मुझे नहीं पता, मैं इसे आपको कैसे समझाऊँ। मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था, यह बयान कर पाना कठिन है। आखिर उसका हाथ हिला। उसके दाएँ हाथ की उँगलियों ने उसकी ठोड़ी को छुआ, और फिर एक कीड़े की तरह धीरे-धीरे वे उँगलियाँ उसके चेहरे की ओर बढ़ीं। अचानक मैंने महसूस किया कि मेरी उँगलियाँ भी ठीक वैसी ही हरकतें कर रही थीं। गोया मैं आईने में बैठे व्यक्ति का प्रतिबिंब था और वह मेरी हरकतों पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा था।"
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