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Gulzar

गुलज़ार की त्रिवेणियाँ

Triveni by Gulzar from 'Raat Pashmine Ki'   कोई चादर की तरह खींचे चला जाता है दरिया कौन सोया है तले इसके जिसे ढूँढ रहे हैं डूबने वाले...
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