Tag: Upendranath Ashk
उपेन्द्रनाथ अश्क का राजकमल चौधरी को पत्र
5, ख़ुसरोबाग़ रोड
इलाहाबाद, 21-11-61
प्रिय राजकमल,
तुम्हारा पत्र मिला। उपन्यास (नदी बहती है) की प्रतियाँ भी मिलीं। मैं उपन्यास पढ़ भी गया। रात ही मैंने उसे...
ये मर्द
किसी क़िस्म के एहसास के बग़ैर गोबिन्द ने चुपचाप लक्ष्मी की चारपाई के इर्दगिर्द पर्दे लगा दिए, पर्दे... जो लकड़ी के फ्रे़म में सफ़ेद...
डाची
छोटी बच्ची रज़िया को 'डाची' पर बैठने का शौक है, जिसे पूरा करने के लिए बाकर डेढ़ साल से जी-तोड़ मेहनत कर रहा था और आज मंडी से डाची खरीदकर ला रहा है.. रज़िया इंतज़ार में है और बाकर घर पहुँचने को व्याकुल..
क्या आप सोच सकते हैं कि एक बाप और बेटी की मांग और पूर्ति के बीच भी वर्ग और जाति आ सकती है?